वो बचपन के खिलौने याद आते हैं

01-08-2024

वो बचपन के खिलौने याद आते हैं

ललित मोहन जोशी (अंक: 258, अगस्त प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

वो बचपन के खिलौने याद आते हैं
वो बचपन के बिलौटे याद आते हैं
 
वो पंछियों की चहचहाहट से जगना 
वो दिन मुझको सुहाने याद आते हैं
 
चुपके से दादी का बुलाना और फिर
वो दादी के मखाने याद आते हैं
 
कि नित ईश का ध्यान कर काम पर जाना
मुझको अब वो ज़माने याद आते हैं
 
पीपल की छाँव में बैठ ख़ुशी बाँटते 
मुझको घर के सयाने याद आते हैं
 
हरे भरे सब खेत हम छोड़ आए है
कि गाँव के अब मायने याद आते हैं
 
सुनो जेब ख़ाली ही रही मेरी मगर 
मुझको माँ के ख़जाने याद आते हैं
 
गाँव को छोड़कर शहर के हो गए सब
मुझको रोते घराने याद आते हैं
 
हर दिन नई चोट को सहता रहा मगर
मुझको पैसे कमाने याद आते हैं

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