ये फ़िक्रमंद लोग

15-07-2025

ये फ़िक्रमंद लोग

संजय मृदुल (अंक: 281, जुलाई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

सुबह सुबह मोबाइल उठा कर जैसे ही वाट्सअप खोलिए, मैसेज की लाइन लगी होती है। जागरूक लोग, क्या कहते हैं, ब्रह्म मुहूर्त में ब्रश करना छोड़, टॉयलेट सीट पर बैठे हुए किसी ग्रुप में कोई विश्व व्यापी समस्या के बारे में पढ़ते हैं, तो उन्हें दिव्य ज्ञान मिलता है कि उस समस्या को तत्काल जितने भी लोग हैं सभी को अवगत कराया जाए। चाहे वो महाराष्ट्र में हो रहा भाषा विवाद हो या इज़राइल ईरान युद्ध। भले उन्हें अपने शहर में क्या हो रहा है मालूम न हो। 

जैसे ही वो इन सारी मुश्किलों को सभी ग्रुप और ब्रॉडकास्ट के माध्यम से सभी को फ़ॉरवर्ड कर के फ़्लश करते हैं, उन्हें बड़ा सुकून मिलता है। अगर ये ऐसा न करें तो चाय का एक घूँट भी हलक़ में नहीं उतरता। सारा दिन सर दर्द होता है। 

कोई कोई सज्जन भक्ति भाव वाले संदेश ऐसे भेजते हैं जैसे इतना कर के वो अपना स्वर्ग की इंट्री पक्की कर रहे हों। तो कोई फूल पत्ती की फोटो भेजकर ख़ुद को पर्यावरण प्रेमी सिद्ध करने की ज़िद पर अड़े होते हैं। 

वो लोग तो और ख़तरनाक होते हैं जो फ़ेसबुक या यूट्यूब के वीडियो के लिंक इस उम्मीद से वाट्सअप पर फ़ॉरवर्ड करते हैं कि लोग इन्हें देखकर सीखेंगे और अमल करेंगे। चाहे वो मोटिवेशनल स्पीकर के वीडियो हों या न्यूज़ चैनल के डिबेट।

जब से ये सोशल मीडिया आया है तब से ज्ञान बाँटने का नया शग़ल लग गया है लोगों को। पहले कोई पर्चा एक हज़ार छपा कर बाँटो तो लाभ होगा वाला खटराग मोबाइल फोन के आने के बाद से ऐसा बढ़ा है कि एक मैसेज चंद मिनटों में हज़ारों में फ़ोन में पहुँचने लगा है। अब कोई चाहे न चाहे ये सब झेलना मजबूरी है। 

जब से कराओके आया और मोबाइल में कराओके के ऐप आए तब से गायकों की बाढ़ आ गई। ये आए दिन अपने गाए हुए गाने भेज कर उम्मीद करते हैं की आप तारीफ़ करें। और आप एक बार मत तो करिए! 

ऐसे ही लेखकों कवियों की नई फ़सल खड़ी हो गई जिनकी कविताएँ, कहानियाँ वाट्सअप के माध्यम से आपको पढ़ना सिखाने लगी हैं। इसी बहाने से लोग हिंदी सीखने लगे। 

अगर आप ऐसे लोगों को ब्लॉक करने लगे तो यक़ीन मानिए आप की कॉन्टेक्ट लिस्ट में उँगलियों पर गिनने लायक़ नंबर ही बचेंगे। 

वाट्सअप आज के जीवन में मोबाइल फोन का अनिवार्य हिस्सा हो गया है। अब वाट्सअप है तो ग्रुप भी होंगे। कुछ परिवार के, स्कूल के पुराने मित्रों के, कुछ ऑफ़िस के तो कुछ समाज के। और अगर आप ज़्यादा सोशल हैं तो कुछ इस और कुछ उस संगठन के। यक़ीन मानिए इनके जो एडमिन होते हैं वो चाहते हैं कि लोग अच्छे मैसेज भेजें, काम की बातें करें, केवल ज़रूरी चर्चा हो लेकिन हम भारतवासी, सारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं टाइप के हैं। तो हमारा बनता है हर उस मैसेज को फ़ॉरवर्ड करना जो जन चेतना को बढ़ाए, सब की ज्ञान वृद्धि करे, जागरूक बनाए। 

वो तो शुक्र है कि ऐसी सेटिंग आ गई है की वाट्सअप के फोटो वीडियो मोबाइल में सेव नहीं होते, पहले तो बेचारा फोन हैंग होकर बेजान हो जाता था। फिर सारा मैमोरी डिलीट कर उसे हल्का किया जाता था। लेकिन अब इंसान के दिमाग़ में जो इन फ़ॉरवर्ड मैसेज के द्वारा भेदभाव, जात-पात, का कचरा भरा जा रहा है उसे कैसे डिलीट किया जाए।

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