उपहार

संजय मृदुल (अंक: 215, अक्टूबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

“सुनो जी! इस दीवाली पर दूज के दिन भैया का जन्मदिन भी है कुछ अच्छा लेना है उनके लिए,” अनु ने विनय से कहा। 

“क्यों?” पीछे से निलय की आवाज़ आई। “क्यों गिफ़्ट लेना है उनके लिए। साल में तीन बार तो ऐसे भी देते ही हो गिफ़्ट। बदले में वो क्या देते हैं हम लोगों को। हम चारों का भी जन्मदिन आता है, आप लोगों की एनिवर्सरी भी आती है। उन्हें क्यों याद नहीं रहते ये। बस साल भर में राखी और दूज पर आना, वो भी किलो भर फल मिठाई के साथ।” 

“निलय तुम चुप रहो, बड़ों के बीच नहीं बोलना चाहिए, बच्चों को!” अनु ने ज़ोर से डाँटा। 

“क्यों नहीं बोलना चाहिये? हम इतने छोटे भी नहीं हैं। कॉलेज पढ़ने लगे हैं अब। और ये घर की बात है तो हम क्यों इसका हिस्सा नहीं बन सकते?” उसने प्रश्न किया। 

अनु की शादी को बीस साल हो गए। जब से वो आई इस घर में सबको जोड़ कर रखने का प्रयास किया उसने। ससुराल और मायके दोनों तरफ़ संतुलन बना कर चलती रही। कभी किसी को नाराज़ नहीं होने दिया, कोई हो भी गया किसी वजह से, तो अनु ही थी पूरे परिवार में जो रूठे को मनाना जानती थी। 

ननद, देवर, भाई, भौजाई उनके बच्चे सब के जन्मदिन पर, त्योहारों पर सबके लिए उपहार लेना। सबको बराबर घर आने पर सम्मान देना ये उसने बचपन से सीखा था। विनय भी कभी मना नहीं करते उसे। उन्हें भी ये सब अच्छा लगता। हर त्योहार पर घर भरा भरा रहता तो आनन्द कई गुना बढ़ जाता। 

विनय के माता पिता भी अनु के इस गुण के क़ायल थे। सारे बुज़ुर्ग चाहते हैं उनका परिवार स्नेह के धागे में मज़बूती से गुँथा रहे। 

उनके जाने के बाद भी ये परम्परा जारी थी। 

पर आज पहली बार विरोध का स्वर उठा था घर में। 

“नहीं पापा, बहुत हुआ! अब ये सब नहीं चलेगा,” निलय की आवाज़ में अवज्ञा थी। “आज एक बात का जवाब दीजिये आप दोनों।” 

विनय को समझ नहीं आ रहा था निलय को क्या बुरा लगा है? क्यों इस तरह विरोध कर रहा है वो। जबकि सबके साथ उसके रिश्ते भी मधुर हैं। छुट्टियों में वो कभी बुआ के घर जाता है, मामा के यहाँ भी। फिर क्यों आज ये सवाल खड़ा हुआ उसके मन में? 

“एक बात बताइये,” निलय ने प्रश्न किया, “माँ, आपको सबके जन्मदिन, एनिवर्सरी याद रहती है। किसी को आप का जन्मदिन याद रहता है? बचपन से बुआ के जन्मदिन पर हम उनके यहाँ जाते हैं। मामा की एनिवर्सरी गर्मी की छुट्टियों में पड़ती है, तब हम वहीं होते हैं। आप हर बार उनकी पसंद का गिफ़्ट लेती हैं। लेकिन आपके या पापा के जन्मदिन पर कोई आता है घर? आपकी एनिवर्सरी भी तो आती है? कोई उपहार क्यों नहीं देता? जितना दूर मायका आपके लिए है उतनी ही दूर तो उनके लिए हमारा घर भी है। वो क्यों नहीं आते कभी याद करके? फूफाजी तो ऑफ़िस के काम से यहाँ आते ही रहते हैं, घर भी आते हैं। पर उन दिनों में क्यों नहीं आते? उनके साथ बुआ भी तो आ सकती हैं न जन्मदिन या एनिवर्सरी पर। पर कोई नहीं आता।” 

“तो क्या हुआ निलय। हमारे अपने हैं वो। नहीं आते तो कोई न कोई वजह होती है। सबकी अपनी व्यस्तताएँ होती हैं। रिश्ते तो अपने ही हैं न बेटे,” अनु ने निलय को समझाने की कोशिश की। 

“अच्छा ऐसा है क्या! फिर आप लोग व्यस्त क्यों नहीं रहते कभी? हर बार हर साल कैसे समय होता है आप लोगों के पास। 

“माँ मेरी बदतमीज़ी के लिए सॉरी। लेकिन बचपन से देखते आ रहे हैं ये सब। चलिए आप दोनों बड़े हैं सब से, शायद इसलिए आप को उनकी तरफ़ से कोई उपहार नहीं मिलता। सबको लगता होगा कि बड़ों को क्या दें, कैसे दें? लेकिन मेरा जन्मदिन भी तो आता है हर साल। मुझे कोई क्यों कुछ नहीं देता। छोटा था तो खिलौने, कपड़े मिल जाते थे। पर समय के साथ सब बंद हो गया। अब तो बस फ़ैमिली ग्रुप में मैसेज कर बधाई दे देते हैं सब। कोई कोई कॉल कर लेता है। 

“माँ! रिश्ते दोनों तरफ़ से निभाए जाते हैं; ऐसा कहीं पढ़ा था मैंने। एक तरफ़ से तो बस ज़िम्मेदारी निभाई जाती है। वही आप करते आ रहे हो।” 

विनय और अनु को उसकी बात दिल तो उतर गई थी। बच्चे जब बड़े होने लगते हैं तो कितना कुछ बदलता है साथ। वक़्त और पीढ़ी के साथ रिश्तों का स्वरूप भी बदलने लगता है।

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