चारों तरफ़ खुदाई है

01-06-2022

चारों तरफ़ खुदाई है

संजय मृदुल (अंक: 206, जून प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

अलसुबह सरकारी नल के पवित्र जल से कूलर में पानी भर के हम पंखे के नीचे पसीना सुखाते बैठे थे कि बाहर से आवाज़ आई। 

“अरे मृदुल भाई! थोड़ा पानी हम पर भी डाल दो यार। ज़रा तो ठंडक मिले।”

हमने उठ के दरवाज़ा खोला तो मजनूं भाई ठंडी हवा के बयार की तरह भीतर आ गए। वही चिर परिचित अंदाज़, एक हाथ में दूध का डिब्बा, दूसरे में धूप से बचने को छाता और चेहरे पर खिली सदाबहार मुस्कान। 

भीतर आते ही कूलर के सामने वाले सोफ़े पर क़ब्ज़ा जमाया और आदेश फरमाया, “भाई! कूलर में पानी भर देने बस से ठंडक नहीं मिलती, चलाना भी पड़ता है इसे।”

कहाँ हम सोच रहे थे कि थोड़ा दिन चढ़े तब कूलर चलाएँगे, सन्डे का दिन गर्मी में कूलर में पानी भर-भर के ख़त्म हो जाता है। 

“अभी तो बस आठ ही बजे हैं भाई मियाँ। तुम्हें इतनी गर्मी लगने लगी अभी से?” हमनें छेड़ा उन्हें। 

“गर्मी तो मृदुल भाई सारे देश में जलवे बिखेरे हुए है। एक तो मौसम की दूसरी खुदाई की। देखिए हर न्यूज़ चैनल पर एक ही चर्चा है आजकल,”उन्होंने ज्ञान बढ़ाया हमारा। 

“सच में मजनूं भाई। क्या हो रहा है कुछ समझ नहीं आता। थोड़े दिन सब ठीक रहता है फिर कोई नया बवाल खड़ा हो जाता है। जाने कैसा देश देकर जाएँगे हम अपनी आने वाली पीढ़ी को?” हमनें चिंता व्यक्त की। 

“अमा यार! तुम क्यों फ़िक्र करते हो। पहले चाय बनवाओ अदरक वाली। कहते हैं न गर्मी गर्मी को काटती है। तो पहले चाय हो जाये तो सन्डे सार्थक हो,” मजनूं भाई मूड में आ गए थे। 

“देखो वहाँ भी खुदाई शुरू हो गयी है हमारे शहर में भी जहाँ देखो ख़ुदा रहता है। वहाँ कुछ मिले ना मिले, हमारे यहाँ तो नल के पाइप, टेलीफोन के केबल, मिल ही जाते हैं जिन्हें काट कर खुदाई करने वाले सबाब का काम करते हैं। एक पाइप कटता है तो नल विभाग उसे जोड़ने ठेकेदार को काम देता है, ठेकेदार मज़दूरों से काम कराता है, पाइप जोड़ने का सामान लाता है। कितने लोगों को नया रोज़गार मिल जाता है। ये खुदाई बड़े काम की चीज़ है भाई।”

इस ख़ुदाई पर ताजा-ताजा शेर सुनो-उन्होंने फ़रमाया। 

“मेरे शहर का अंदाज़ ही जुदा है
जिधर देखिए उधर ही ख़ुदा है।”

“भाई मियाँ! कितनी समानता है ना शब्दों में देखो, एक गड्ढा हुआ तो बोले वहाँ खुदा है और ऊपरवाला भी ख़ुदा है। नगर निगम की भी खुदाई है और उस की भी ख़ुदाई है। गड्ढे की खुदाई के बाद वो फिर भर दिया जाता है पर धर्म जाति के नाम पर जो खुदाई होती है, वो कभी नहीं भर पाती।” 

मजनूं भाई सेंटी हो गए। 

“यार मृदुल! क्या पा लेंगे हम यूँ लड़कर? सदियों से तो लड़ते आये हैं। अब जाकर शिक्षा, स्वास्थ्य, तरक़्क़ी को लेकर सीरियस हुए तो फिर वही क़वायद शुरू हो गयी है। 

“इतिहास से सबक़ लेकर भविष्य को मज़बूत बनाने का प्रयास होना चाहिए ना कि इतिहास को फिर ज़िन्दा करने का। जो ग़लतियाँ हमारे पुरखों ने की उसकी सज़ा आज की पीढ़ी को क्यों देना? वो अगर कुछ ग़लत कर गए तो उसे सुधारना ज़रूरी है लेकिन इस तरह से नहीं कि हम आपस में फिर नज़र भी न मिला पाएँ।” 

हम सोच ही रहे थे कि क्या कहें तभी चाय आ गयी। चाय की महक ने मजनूं भाई को वापस वर्तमान में ला पटका। 

“भाभी जी! आपके हाथ की चाय का जवाब नहीं!” उन्होंने जयकारा लगाया। और श्रीमती ने किचन से ही थैंक्यू किया। 

चाय की पहली चुस्की से ही उनके चेहरे पर रौनक़ आ गयी। 

“भाई मृदुल! हर उस जगह को खोदना चाहिए जहाँ से हमारा गौरवशाली अतीत मिलता हो। लेकिन फिर उसपर इतनी मज़बूत इमारत बननी चाहिए कि आने वाली पीढ़ी इस देश, इसके ज्ञान-विज्ञान, इसकी ख़ुशहाली, इसकी तरक़्क़ी के गीत गाये ना कि धर्म जाति के नारे। उस भारत में स्कूल कॉलेज ज़्यादा हों ना कि धार्मिक स्थल। बच्चों को ऐसी पढ़ाई मिले कि वो इंसानियत सीखें, विज्ञान गणित के नए सूत्र लिखें। नए भारत के इतिहास में वो लिखा जाए जो हमारी आने वाली पीढ़ी को सिखाये की भाईचारा, प्रेम, इंसानियत से बढ़कर कोई धर्म नहीं।” 

हमारे हाथ में चाय का कप ठंडा हो रहा था और हम सोच रहे थे हर इंसान ऐसा क्यों नहीं सोचता। ईश्वर ने तो बस इंसान बनाया तो हम क्यों नहीं इंसान बन कर जी सकते? 

“अरे मृदुल भैया! चाय सुड़क लो ठंडी हो रही। भाभी दुबारा नहीं देने वाली चाय।” 

उनकी हँसी गूँजी और हम वर्तमान में आ गए। 

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