रिश्तों की गाँठ
संजय मृदुलदया दरवाज़े के बाहर खड़ी थी और आदित्य दरवाज़ा खोले हुए, दोनों निःशब्द। लगभग पच्चीस साल बाद उनका सामना हुआ था। एक ही माँ के जाये भाई–बहन के बीच ऐसी दीवार खड़ी हो गयी कि बरसों चेहरा तक न देख सके एक दूसरे का।
आदित्य की एक आँख छोटी थी जिसके कारण हर जगह उसका मज़ाक बनाया जाता। अपनी इस कमी को उसने पूरी किया अच्छी पढ़ाई और बेहतर नौकरी से। पर जब शादी की बात आई तो ये कमी हर जगह आड़े आने लगी। एक जगह जब बात पक्की होने के आसार दिखे तो लड़की वालों ने एक शर्त रख दी। दया की शादी उनके बेटे से करनी होगी तभी आदित्य की शादी सम्भव है। दया अपनी शिक्षा सुंदरता स्वभाव के कारण हर जगह प्रशंसा पाया करती थी, उसके भी कुछ ख़्वाब थे। मगर भाई की ख़ुशी के लिए परिवार ने उसे राज़ी कर लिया कि वो ये शादी कर ले। वहीं आदित्य की ससुराल में भी ऐसा ही कुछ हुआ, उनका बेटा हर तरह से दया से कम था सो उसकी ज़िन्दगी सँवर जाए इसलिये उन्होंने बेटी के रिश्ते में समझौता कर बेटे को ख़ुशियाँ दे दीं।
राजस्थान में इसे आंटा-सांटा कहते हैं तो छत्तीसगढ़ में गुरांवट। किसी और राज्य में अलग-अलग नाम होंगे मगर ऐसे रिश्ते मोलभाव की तरह किये जाते हैं।
शादी हो गयी दोनों भाई-बहन की। अपने-अपने परिवार बन गए। फिर शुरू हुई मुश्किलें, यहाँ आदित्य की पत्नी रूपा को आदित्य की कमियाँ नज़र आतीं तो वहाँ दया को उसके पति, दया की ख़ूबियों के कारण प्रताड़ित करते। दया की तकलीफ़ की आँच यहाँ तक आती तो असर भी होता। कुछ सालों में दया का मायका आना बंद हो गया और रूपा का भी जाना।
ऐसी शादियों में यह मुश्किल ज़रूर आती है, एक घर में अगर आग लगे तो दोनों घर में धुआँ उठता है।
समय बीतता गया। त्योहारों पर भाई-बहन मन मसोस कर रह जाते। न बातें होती न मुलाक़ात। दोनों परिवार बस नाम के रिश्तेदार रह गए। वहाँ दया के पति की आदतें और यहाँ रूपा का हर बात पर ननद को उसकी ज़िन्दगी बर्बाद करने के लिए ज़िम्मेदार ठहराना।
सालों बाद दोनों की बेटियाँ एक शहर में एक ही कॉलेज में पढ़ने पहुँची। जब दोस्ती बढ़ी तो एक दूसरे के बारे में जान कर दोनों हैरान हुईं कि वो बहने हैं। आज दया का मायके आना दोनों बेटियों का प्रयास था। दोनों गेट के बाहर खड़ी चुपचाप नज़ारा देख रही थीं।
आदित्य ने प्यार से दया का हाथ पकड़ा और आवाज़ दी, “रूपा देखो कौन आया है।”
इतने में दोनों बेटियाँ शोर मचाती हुई अंदर आ गयी।
कभी-कभी बच्चे भी किसी रिश्ते पर जमी बर्फ़ पिघला देते हैं।
संजय अग्रवाल