स्क्रीन टाइम बनाम स्लीप टाइम
स्नेहा सिंह
आप दिन में कितने घंटे स्क्रीन के सामने होती हैं? अपने नियमित काम से थोड़ी देर के लिए जैसे ही ख़ाली होती हैं तुरंत हाथ में मोबाइल ले लेती हैं? स्क्रीन टाइम में केवल मोबाइल की ही गिनती नहीं करनी है, आप ऑफ़िस में कितने घंटे कंप्यूटर या लैपटॉप पर काम करती हैं? घर आ कर कितनी देर टीवी देखती हैं। आज ओटीटी प्लैटफ़ॉर्म पर वेबसिरीज़ की लोगों की आदत पड़ गई है। पूरा का पूरा सीज़न एक बैठक में ख़त्म कर देने वालों की भी कमी नहीं है। क्या आप भी ऐसा करती हैं? वीकएंड में तो पूरी की पूरी रात वेबसिरीज़ देखी जाती हैं। सामान्यतः, पूरे दिन में हमारी आँखें किसी न किसी स्क्रीन के सामने रहती हैं? अभी जल्दी एक सर्वे आया है, जिसमें कहा गया है कि मनुष्य का स्क्रीन टाइम लगातार बढ़ता जा रहा है, जिसकी वजह से स्लीप टाइम घट रहा है। एक समय था, जब बारह बजे सोना बहुत देर माना जाता था। बारह बजे तक जागते रहने पर माँ-बाप या बुज़ुर्ग कहते थे कि क्या आधी रात तक जागती रहती हो? अब बारह बजे तक जागना जैसे आम हो गया है। अब तो ऐसा लगता है कि जैसे सोने का समय ही 12 बजे का हो गया है। ऐसा कहने वाली तमाम लोग मिल जाएँगी कि किसी से कहो कि नौ-दस बजे सो जाती हूँ तो उसे हैरानी होती है। लोगों की जीवनशैली ही ऐसी हो गई है कि उन्हें जल्दी सोना हो तो नींद ही नहीं आती। बाॅडी क्लाक ही ऐसा सेट हो गया है कि बारह बजने के बाद ही नींद आती है।
क्या कहते हैं डॉक्टर और साइकोलाॅजिस्ट
मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए डॉक्टर और साइकोलाॅजिस्ट लोगों को स्क्रीन टाइम घटाने की सलाह देते हैं। उनका कहना है कि स्क्रीन टाइम पर नज़र रखें। अधिक समय देंगे तो समय तो ख़राब होगा ही, साथ ही साथ स्वास्थ्य की समस्याएँ भी खड़ी होंगी। ‘सेंटर फ़ॉर द स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसायटी’ द्वारा अभी देश के 18 राज्यों में 15 से 34 साल के उम्र के 9316 युवाओं और युवतियों पर एक सर्वे किया गया था। इस सर्वे में 45 प्रतिशत युवकों और युवतियों ने कहा था कि उनका स्क्रीन टाइम बढ़ा है।
सोशल मीडिया पर रहते हैं ऐक्टिव
ह्वाट्सएप, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, फ़ेसबुक और ट्विटर पर लोग सब से अधिक ऐक्टिव रहते हैं। इसी के साथ इन युवकों-युवतियों ने यह भी कहा था कि उनकी चिंता और भय में बढ़ावा हुआ है। दूसरे एक सर्वे में कहा गया है कि स्क्रीन टाइम बढ़ने की वजह से नींद कम हुई है। हमेशा कुछ न कुछ देखते रहने की वजह से आँखों को मेहनत पड़ती है। रात में बिस्तर पर लेटने पर भी तुरंत नींद नहीं आती। सोने से पहले अंतिम समय में भी लोग मोबाइल देख लेते हैं। रात में आँख खुलती है तो भी लोग मोबाइल चेक कर लेते हैं। सुबह उठने के साथ ही लोग पहला काम मोबाइल देखने का करते हैं। मज़े की बात तो यह है की ज़्यादातर लोगों को मोबाइल के पीछे समय बरबाद करने का अफ़सोस भी होता है।
माँ-बाप से सीखते हैं बच्चे
बच्चे भी अब हाथ में मोबाइल लिए बैठे रहते हैं। बच्चों का स्क्रीन टाइम कभी चेक किया है? जो पेरंट्स अपनी संतानों को जितनी देर उनकी इच्छा हो, उतनी देर मोबाइल उपयोग के लिए देते हैं, माँ-बाप को देख कर ही वे यह सब सीखते हैं। माँ-बाप ही जब मोबाइल के एडिक्ट होंगे तो बच्चों से अच्छी आशा कैसे रखी जा सकती है। बच्चों की आँखों की समस्याएँ लगातार बढ़ रही हैं। इसके पीछे भी स्क्रीन टाइम ही ज़िम्मेदार है।
नींद पूरी नहीं होगी तो पूरा दिन ख़राब होना ही है।
लाइफ़स्टाइल मैनेजमेंट के विचार
लाइफ़स्टाइल मैनेजमेंट एक्सपर्ट दिन को तीन हिस्सों में बाँटने की बात कहते हैं। आठ घंटे काम और आठ घंटे अन्य दिनचर्या और आठ घंटे नींद। काम करते समय मोबाइल को दूर रखना चाहिए। रिलैक्स होने के लिए ही आठ घंटे हैं। इसके भी तीन हिस्से करने चाहिए। तीन घंटे दैनिक क्रियाओं के लिए, तीन घंटे स्वजनो से संवाद के लिए और तीन घंटे अपनी पसंद की प्रवृत्ति के लिए। इन तीनों घंटों को मोबाइल ही न खा जाए, इस बात का ध्यान रखना चाहिए।
बात करते समय ध्यान कहाँ रहता है
आप किसी से बात करती हैं तो उससे आँख से आँख मिला कर बात करती हैं? ज़्यादातर लोगों का ध्यान दूसरों से बात करते समय मोबाइल में ही होता है। ऐसा करना सामने वाले व्यक्ति का अपमान है। आप ख़ुद ही सोचिए कि आप किसी से बात कर रही हैं और वह आप की ओर न देखे तो आप को कैसा लगेगा?
डिजिटल डिसिप्लिन
अब का समय डिजिटल डिसिप्लिन फ़ॉलो करने का है। लोग ट्रेन, बस या प्लेन में फुल वाॅल्यूम कर के कुछ देखते या वीडियो काल पर बात करते रहते हैं। ऐसा करने वाला यह भी नहीं सोचता कि उसकी इस हरकत से कोई डिस्टर्ब या इरिटेट तो नहीं हो रहा। आप एंज्वाय कीजिए कोई दिक़्क़त नहीं है, पर दूसरों को ख़लल नहीं पहुँचना चाहिए।
शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें
हर किसी को अपना बाॅडी क्लाक इस तरह सेट करना चाहिए कि अपनी शारीरिक और मानसिक स्वस्थता बनी रहे। शरीर का तो ऐसा है कि इसकी जैसी आदत डालेंगी, यह उसी में ढल जाएगा। नींद के बारे में तो यह भी कहा जाता है कि नींद को बढ़ाएँगी तो बढ़ेगी, घटाएँगी तो घटेगी। तमाम लोग कहती हैं कि मैं छह घंटे ही सोती हूँ। बहुत से महान लोगों के बारे में हमने सुना है कि वह मात्र इतने घंटे ही सोते थे। अच्छी बात है, पर वह जागते हुए क्या करते थे, यह जानना महत्त्वपूर्ण है। उनका शरीर उन्हें अधिक काम करने और कम सोने का परमिट करता रहा होगा। वे लोग जागते समय क्रिएटिव काम करते रहे होंगे। वे मोबाइल लेकर नहीं बैठे रहते रहे होंगे या टीवी में नहीं खोए रहते रहे होंगे।
मेडिकल साइंस क्या कहता है
मेडिकल साइंस कहता है कि आठ घंटे की नींद ज़रूरी है। संयोग से कभी नींद ज़्यादा या कम हो जाए तो दिक़्क़त की कोई बात नहीं है। पर बाक़ी के संयोगों में शरीर को पूरा आराम तो मिलना ही चाहिए। जिस तरह कम सोना शरीर के लिए परेशानी खड़ी करता है, उसी तरह ज़्यादा सोना भी शरीर को नुक़्सान पहुँचाता है। तमाम महिलाएँ दस-बारह घंटे सोती हैं। इस तरह अधिक सोने की भी आदत पड़ जाती है। नींद का ऐसा नहीं है कि आज दो घंटे कम सो लिया तो कल दो घंटे ज़्यादा सो लिया तो बराबर हो जाएगा। हाँ, कभी हम ऐसा करती हैं कि नींद न पूरी हुई हो या थकान लगी हो तो अगले दिन थोड़ा ज़्यादा आराम कर लिया। इसमें भी कभी-कभी चल जाता है।
उठने पर फ़्रेश फ़ील हो
सच और अच्छी बात तो यह है कि बिस्तर पर पड़ते ही थोड़ी देर में नींद आ जानी चाहिए। रात को अच्छी और गहरी नींद आए और सवेरे नेचुरल कोर्स में नींद उड़ जाए। उठने पर एकदम फ़्रेश फ़ील होना चाहिए। नींद अच्छी न आने पर सवेरे उठने पर थकान महसूस होती है। अच्छी नींद के लिए जितना हो सके, स्क्रीन से दूर रहें। दिन में कुछ समय खुले में रहें।
ख़ुद पर नज़र रखें
ख़ुद पर भी नज़र रखनी पड़ती है। ध्यान नहीं रखेंगी तो ख़ुद ही ख़ुद के हाथ से निकल जाएँगीं। कार होती है तो हम दिन भर घूमती ही नहीं रहती हैं। इसी तरह मोबाइल है तो दिन भर कुछ न कुछ देखते रहना ज़रूरी नहीं है। आँखों को आराम मिलना बंद हो जाएगा तो दृष्टि बदल जाएगी।
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