सब देख रहा है रब

01-06-2025

सब देख रहा है रब

सुनील कुमार मिश्रा ‘मासूम’ (अंक: 278, जून प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

पता है देख रहा हैं रब
फिर क्यूँ ग़लत कर्म करते सब।
 
बता रही चिड़ियाएँ चीखकर, 
जैसे देख लिया कोई विषधर।
 
बच्चे बेतरतीब रहे भाग, 
जैसे शैतानी करते देख ले तात।
 
मची खलबली सब कर्मचारी, 
जैसे अनायास आ गए अधिकारी, 
 
पता है देख रहा है रब
फिर क्यूँ ग़लत कर्म करते सब।

1 टिप्पणियाँ

  • 3 Jun, 2025 10:30 PM

    चिड़िया,तात, और अधिकारी जब देखते हैं तब प्रभावित होते हैं। आपके कहे अनुसार।रब्ब केवल शब्द प्रमाण है। और शब्द प्रमाण आज कल कोई नहीं मानता।दंड ही अधिकतर लोक में परिवर्तन ला सकता है। अच्छी कविता है।----हेमन्त।

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