(दोहा छंद)
1.
नीलकंठ से भिड़ गया, भस्मासुर नादान ।
यही बेहया शिष्य की, होती है पहचान॥
2.
गुर सिखाए हो जिसने, मत दे उसको ज्ञान ।
पाएगा मंज़िल नहीं, किया द्रोण अपमान॥
3.
बस चुके हो आप ही, ‘उर’ गुरु-द्रोण समान।
धनंजय गर नहीं बना, चाह ‘अभिमन्यु’-मान॥
4.
कहलाता गुरु पूर्ण वो, करता बात सपाट ।
सिखाता हर दुश्मन की, सभी काट की काट॥