हाय रे! मानुष ख़ुद्दार
सुनील कुमार मिश्रा ‘मासूम’
हाय रे! मानुष ख़ुद्दार, तू है इस ज़माने का लाचार।
गर होता थोड़ा चाटुकार, तेरी नैया हो जाती पार।
बिन ग़लती तू झुक जाए, ऐसे नहीं तेरे संस्कार।
गर तू झुक गया, मर जाएगा तेरा किरदार।
हाय रे! मानुष ख़ुद्दार, तू है इस ज़माने का लाचार॥
पग-पग पर सताए यह जग सारा, हर तरफ़ झूठों का है जयकारा।
‘मासूम’ का यह कहना मान, अपने कर्म को सच्चा धर्म जान।
रण में जब तू अकेला होगा, सिर्फ़ कर्म ही तेरा साया होगा।
सच्चा है तू जज़्बात न मार, निडरता से तेरी मंज़िल होगी पार।
हाय रे! मानुष ख़ुद्दार, तू है इस ज़माने का लाचार॥
छोड़ दे इस झूठे जग से आस, कर हमेशा उस ‘रब’ पर विश्वास।
जब होगी तुझ पर ईश कृपा, तेरे प्रति ख़त्म होगी झूठी दुनिया की जफा।
अभी तो है केवल आगाज़, करना है विनम्रता से सहृदय पर राज।
हाय रे! मानुष ख़ुद्दार, तू है इस ज़माने का लाचार॥