रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू’ – 002
रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'1.
बीते ज़माने
नहीं बैठती अब
पिकी पैताने।
2.
पिकी भोर में
राग प्रभाती गाती
मुझे लुभाती?
3.
गाँव के बाद
कोयल से संवाद
फिर न हुआ।
4.
जीवन पाने
चले भोर में पाखी
चुगने दाने।
5.
पहरे पर
पेड़ थे जहाँ, कहाँ?
पाखी का घर
6.
बूढ़ा पीपल
बच्चों को छाँव देता
ठण्डी शीतल।
7.
टहनी बनी
पंछियों का आसरा
ख़ुशियाँ मनी।
8.
करते मस्ती
पंछियों की पेड़ों पे
एकांत बस्ती।
9.
खोया चमन
कंक्रीट के ही वन
पाखी उन्मन!
10.
डाल से छूटे
पाखी बेघर हुए
सपने टूटे।
11.
प्यारी टहनी
पंछी को छाया देती
छाते-सी तनी
12.
पंछी सुबके
पेड़ का ख़ूनी इंसाँ
डरे, दुबके।
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