रश्मि विभा त्रिपाठी ‘रिशू’ – 004
रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'
1.
बर्ताव रूखा
पतझर का देखा
विटप सूखा।
2.
पत्ते झरते
पतझर में पेड़
आह भरते।
3.
कहीं खटके
आहट दरख़्तों को
पात भटके।
4.
पत्ते जो गिरे
पेड़ बेचारे खड़े
चिंता में घिरे।
5.
जब भी आया
पतझर ने दुख
पेड़ों पे ढाया।
6.
शाख़ है सूनी
दिन-ब-दिन पीर
पेड़ की दूनी।
7.
निर्वस्त्र किया
पतझर ने दुख
पेड़ों को दिया।
8.
पल्लव छोड़ें
अलगाव के दुख
पेड़ों को तोड़ें।
9.
बिछड़कर
शाख़ से, क्या-क्या बीती
पक्षियों पर!
10.
पेड़ उखाड़ा
परिंदों का इंसाँ ने
घर उजाड़ा।
11.
पेड़ उकेरे
जीवनदायी मंत्र
शाम-सवेरे।
12.
पेड़ ऊँघते
शैतान हवा आती
झिंझोड़ जाती।
13.
किया छलावा
काटे हैं वृक्ष, रुष्ट
बरम बाबा।
14.
वृक्ष लगाओ
नई नस्लों को थोड़ी
छाँव दे जाओ।
15.
लिए झपट
पतझड़ ने देखो
वृक्षों के पट।
16.
डाल से छूटे
पाखी बेघर हुए
सपने टूटे।
17.
पेड़ों को भाते
हरियाली के गीत
हमेशा गाते।
18.
आदमी गीधे
क्यों जड़ काटने को
पेड़ हैं सीधे।
19.
देते आसरा
सभी को, सीखो कुछ
पेड़ों से ज़रा।
20.
जंगल घना
मिटाके कंक्रीट का
महल बना।
21.
पेड़ों के बिन
साँस ना ले पाओगे
एक भी दिन।
22.
आई न दया
आदमी को पेड़ों पे
बेघर बया।
23.
रोया परिन्दा
पेड़ काटके इंसाँ
बना दरिन्दा।
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