रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू’ – 003

01-02-2023

रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू’ – 003

रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू' (अंक: 222, फरवरी प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

1.
बैठे मदन
ऋतु की आसन्दी पे
मन मगन। 
2.
वसंत झूले
ऋतु के हिंडोले में
सगर्व फूले। 
3.
धरा के पाँव
घुँघरू बाँधे हवा
झूमता गाँव। 
4.
वसंत खड़ा
फोड़ने बग़िया में
ख़ुश्बू का घड़ा। 
5.
जँच रही है
धरा धानी कुर्ती में
चले फ़ुर्ती में। 
6.
जीवन कूल
ख़ुश्बू, रंग, फूल
यही है मूल। 
7.
पलाश आता
ले ख़ुश्बू-रंग-पेटी
जी भरमाता। 
8.
पाकर पाती
वसंत की वसुधा
पढ़ मुस्काती। 
9.
वसंत टाँके
भू के जूड़े में फूल
काँटे दें तूल। 
10.
कनक बूटे
भू का धानी घाघरा
रंग न छूटे। 
11.
गुंजायमान्‌
घाटी में लतिका का
सौरभ-गान। 
12.
घोले सुवास
घाटी में खनकाती
लता सुहास। 
13.
भौंरा लुटेरा
आया छीनने अर्क
कली सतर्क। 
14.
भौंरा पाहुन
पुष्प-पराग-भोज
जीमता रोज़। 
15.
मधुमास में
धरा का अलंकार
गुलबहार। 
16.
जूही की कली
धरा की हथेली पे
ख़ुश्बू की डली। 
17.
हैं बेख़बर
खेत ओढ़ के सोए
पीली चादर। 
18.
खेत हैं दंग
किसने छितराया
केसरी रंग। 
19.
चले औचक
कनिका की कमर
जाए लचक। 
20.
रूप अनूप
शोध-पत्र लिखती
धरा पे धूप। 

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