पिता को समर्पित हाइकु – 001 : रश्मि विभा त्रिपाठी ’रिशू’

01-09-2021

पिता को समर्पित हाइकु – 001 : रश्मि विभा त्रिपाठी ’रिशू’

रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू' (अंक: 188, सितम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

1.
पिता का जाना
जीवन अस्त-व्यस्त
आँधी का आना।
 
2.
पिता जो चले
प्राणों की पीड़ा घनी
विछोह छले।
 
3.
पिता जो गए
शून्य में ताकें नैन
पथरा गए ।
 
4.
पिता की छाया
दुख ताप निकट
कभी न आया।
 
5.
पिता का क्रोध
परम सत्य-बोध
सदा कराता
 
6.
पिता का ध्येय
बाधा से लड़ सुता
होवे अजेय।
 
7.
पिता की याद
जैसे जल-प्रपात
भादों की रात
 
8.
निशा भी रोए
नभ को जब हेरूँ
पिता को टेरूँ।
 
9.
पिता हैं ईश
स्वप्नों में भी सुख का
बाँटें आशीष।
 
10.
पिता हैं फूल
मेरे हेतु बिखरे
चुभें न शूल।
 
11.
पिता हैं बुद्ध
दु:ख-निवृत्ति हेतु
नित्य प्रबुद्ध।
 
12.
पिता हैं कल्कि
क्षमा ही नहीं बल्कि
उद्धार करें।
 
13.
पिता हैं गीत
सदा गुंजायमान
मधु-संगीत।
 
14.
पिता हैं पेड़
सहें हवा की मार
शाखों से प्यार।
 
15.
पिता अडिग
झंझावात जानते
लोहा मानते।
 
16.
पिता प्रसून
उड़ेलते सुवास
उत्फुल्ल-श्वास।
  
17.
पिता हैं कृष्ण
करें जीवन-प्रश्न
पल में हल।
 
18.
पिता के जाते
विदा हो गए सभी
रिश्ते औ नाते।

19.
ले काँधे घूमे
नदी-गिरि-अरण्य
पिता हैं धन्य।
 
20.
प्रदीप्त-पंथ
पितु-प्रेम-प्रदीप्ति
आभा अनंत।
 
21.
पिता सैनिक
ड्योढ़ी पर तैनात
दिन या रात।
 
22.
पिता हैं वीर
लड़ें संताप-युद्ध
कष्टों पे क्रुद्ध।
 
23.
पिता विजेता
बाधाएँ छोड़ें रण
छू के चरण।
 
24.
पिता हैं भीष्म
सुता-रक्षा-प्रतिज्ञा
सचेत-प्रज्ञा।
 
25.
पिता हैं रुद्र
दुख-रिपु संहारी
त्रिशूलधारी।
 
26. 
पिता दधीचि
किया सर्वस्व दान
सुत-कल्याण।
 
27.
पिता हैं राम
रावण से संग्राम
जीत ही आए।
 
28.
पिता आरोही
लाँघ हर पत्थर
चढ़े शिखर।
 
29. 
पितु-आशीष
विघ्न-समक्ष शीश
झुकने न दे।

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