रक्तबीज भाग – 4
महेशचन्द्र द्विवेदीभाग - 4
यह कहकर ऐल्बर्ट कुछ विचारों में खो सा गया।
कुछ देर बाद मैंने पूछा, "और चौथे रक्तबीज का क्या हुआ?"
"वह भी उसी इंटेलीजेंस एजेंसी का क्रीतदास बन गया है। उसे एजेंसी द्वारा वित्तीय-प्रबन्ध की विशिष्टतम शिक्षा दिलाई गई और साथ ही साथ शारीरिक सुखों में लिप्त रहने एवं मानवीय मूल्यों की सर्वथा अवहेलना करने हेतु प्रशिक्षित किया गया और सर्वप्रथम दक्षिण-पूर्व एशिया के एक देश में स्थापित कर ऐसे सभी देशों, जो इस एजेंसी के देश की नीतियों के विरोधी हैं, में स्टॉक-मार्केट में अस्थिरता लाने, राजनीतिज्ञों को उत्कोच दिलाने, जाली करेंसी नोटों की भरमार करवाने आदि उपायों के द्वारा उनकी आर्थिक एवं राजनैतिक व्यवस्था को चौपट करने का कार्य सौंपा गया है। इंटेलीजेंस एजेंसी को बिल के विषय में भी सब कुछ प्रारम्भ से ज्ञात है और उनकी योजना तीसरे या चौथे किसी रक्तबीज का अपराध-रहस्य खुल जाने पर उसके स्थान पर बिल को अपराधी बना देना है, जिससे गहन पूछताछ के दौरान बिल उनकी योजना के विषय में कुछ भी नहीं बता सकेगा और इंटेलीजेंस एजेंसी का रहस्य गुप्त ही रहेगा। चूँकि बिल भी फ़ाइनेंशियल मैनेजमेंट में प्रशिक्षित है अत: चौथे रक्तबीज का नाम इंटेलीजेंस एजेंसी ने बिल ही रक्खा था और दक्षिण-पूर्व एशिया के देश में उसका मूल पता वही दिया गया था जो बिल का था। उसने अपना आर्थिक विनाश का कार्य एक बड़े जनतांत्रिक देश में प्रारम्भ ही किया था कि उसका सुराग इंटरपोल को लग गया था और वह रक्तबीज वहाँ से ग़ायब हो गया था। चूँकि वहाँ नाम व पता बिल का लिखा हुआ था अत: एयर-इंडिया की फ़्लाइट के दौरान मैंने तुम्हें बिल समझ कर बन्दी बना लिया था। अभी कुछ दिन पूर्व मुझे ज्ञात हुआ कि चौथे रक्तबीज ने अब अपना अड्डा अफ्रीका के एक देश में बनाया है और वहाँ के एक देश में आर्थिक विनाश की गतिविधियाँ चालू कर दी हैं। उसका सुराग लगाकर मैंने उसे बन्दी बनाकर गुप्त स्थान पर रख दिया है और बिल को राज़ी कर उसके स्थान पर रख दिया है जिससे इंटेलीजेंस एजेंसी को संदेह न हो और आर्थिक विनाशकारी गतिविधियों की योजनाओं की जानकारी भी होती रहे।"
इतना सब बताने के बाद ऐल्बर्ट कुछ ही देर बार चला गया। जाते समय मुझे पूर्ण गोपनीयता बनाये रखने का निर्देश पुन: दे गया। एक पक्ष के अन्दर ही ऐल्बर्ट का टेलीफोन अर्धरात्रि के समय आया। बिना अपना परिचय दिये उसने कहना प्रारम्भ कर दिया, "मेरी बात ध्यान से सुनो। शोध संस्थान में बनने वाली वस्तु शीघ्र तैयार होने वाली है और तैयार होते ही एक शत्रु देश पर आज़माने का कार्यक्रम बन चुका है। अत: तुम्हें दो दिन में ही योजनानुसार तैयार रहना है।" यह कहकर ऐल्बर्ट ने मेरे द्वारा "ठीक है" कहे जाते ही टेलीफोन काट दिया।
दूसरे दिन मैंने 3 माह की छुट्टी का प्रार्थना-पत्र दिया और उसके अस्वीकृत होने पर अपना त्याग-पत्र भेज दिया। घर आकर ऐल्बर्ट के फोन की प्रतीक्षा करने लगा। रात्रि में उसका फोन आया, "कल दस बजे दिन में नीले रंग की डैट्सन कार नं. CHH-32 - 5360 यू.एन.ओ.मुख्यालय के गेट के निकट तुम्हारी प्रतीक्षा करेगी।" उसके बाद फोन कट गया।
मेरी वह रात बड़ी बेचैनी से कटी- मेरे मस्तिष्क में अपने भविष्य के ख़तरों का अहसास था परन्तु स्वयं को मानवता को विनाश से बचाने के योग्य समझे जाने से मन में गर्व का अनुभव भी हो रहा था। सुबह मैं जल्दी-जल्दी तैयार हो गया और केवल अत्यावश्यक सामान लेकर 9 बजे यू.एन.ओ. मुख्यालय को प्रस्थान कर गया। ठीक 10 बजे मुख्यालय के गेट पर आकर एक नीली डैट्सन खड़ी हो गई। उसकी नम्बर प्लेट पढ़कर जैसे ही मैं उसके पास पहुँचा, उसका पीछे का एक दरवाज़ा खुल गया और वहाँ बैठे एक व्यक्ति ने मुझे झटपट अन्दर बुला लिया। कार तुरन्त चल दी। रास्ते में उस व्यक्ति ने एक भव्य बिल्डिंग का नक्शा दिखाते हुए कहा, "इसमें जहाँ निशान लगा है वही न्यूक्लियर शोध संस्थान का कम्प्यूटर-रूम है। ध्यान से देख लो।" फिर न्यूयार्क नगर से बाहर निकलने पर उस व्यक्ति ने कहा, "आशा है तुम बुरा नहीं मानोगे" और यह कहते हुए बिना मेरे उत्तर की प्रतीक्षा किये मेरी आँखों पर पट्टी बाँध दी। मुझे लगभग आधा घंटा तक गाड़ी चलाने के बाद किसी जगह ले जाया गया, जहाँ एक हेलीकाप्टर पर मुझे बिठाया गया और हेलीकाप्टर स्टार्ट हो गया। आँखें बाँध दिये जाने से मैं कुछ भयभीत सा हो गया था परन्तु ऐल्बर्ट पर मुझे इतना विश्वास हो गया था कि मैंने कोई प्रतिरोध नहीं किया।
कई घंटे तक उड़ने के बाद हम कहीं उतरे। उड़ान के दौरान मेरे साथ का व्यक्ति मुझे तीसरे रक्तबीज की आदतों, मैनरिज़्म एवं पसंदों के विषय में जानकारी कराता रहा। हेलीकाप्टर से उतरने के बाद मुझे एक कार पर लगभग एक घंटे तक चलाकर ले जाया गया। एक स्थान पर मेरी आँखों की पट्टी को खोलकर मुझे यह कह कर उतार दिया गया कि कुछ दूर आगे बाँयीं तरफ शोध संस्थान का बड़ा सा हरे रंग का गेट है, उसमें मुझे इस प्रकार चले जाना है जैसे रोज़ आता-जाता रहा होऊँ।
16 अगस्त, 1996 मेरे जीवन का सबसे रोमांचकारी दिन था। मैंने कम्प्यूटर का कोड खोलकर परमाणु बम्ब बनाने की प्रक्रिया के सम्बन्ध में सभी रिकार्ड्स नष्ट कर दिये थे और संस्थान के निकट स्थित एक टेलीफोन-बूथ से ऐल्बर्ट को यह सूचना दे दी थी। ऐल्बर्ट ने कहा था कि ठीक है 3 घंटे बाद मैं उसी बूथ पर मिलूँ। ठीक समय पर उस स्थान पर एक कार आ कर मुझे चुपचाप वहाँ से ले गई। रास्ते में फिर मेरी आँखों पर पट्टी बाँध दी गई और हेलीकाप्टर से मुझे कहीं दूर ले जाया गया। फिर एक स्थान पर हेलीकाप्टर से उतार कर कार से एक निर्जन स्थान पर बने मकान में ले जा कर मेरी पट्टी खोल दी गई। वहाँ ऐल्बर्ट उपस्थित था। उसने मुस्कराते हुए मेरा स्वागत किया और मानवता के हित में एक महान कार्य करने हेतु मुझे बार-बार बधाई दी। परन्तु इसके बाद उसने गम्भीर मुद्रा में कहना प्रारम्भ किया, "मुझे तुम्हें कुछ दुखपूर्ण सुचनाएँ भी देनी हैं। चौथे रक्तबीज ने गुप्त जेल के संतरियों को झांसा देकर भागने का प्रयत्न किया, और भागते हुए जेल के अधिकारियों की गोली से मारा गया।"
यह सुनकर मेरी सारी प्रसन्नता छूमंतर हो गई। ऐल्बर्ट ने मेरा विवर्ण चेहरा देखकर मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "मेरी बात अभी पूरी नहीं हुई है। बिल को चौथे रक्तबीज के स्थान पर प्रतिस्थापित किये जाने का रहस्य उस इंटेलीजेंस एजेंसी को ज्ञात हो गया था। जब बिल की कार्यवाहियों से एक देश की आर्थिक विनाश की दिशा उलटती प्रतीत होने लगी थी, तब उन्हें संदेह हुआ होगा जो उन्होंने उसके एडिनबरा वाले घर पर अनुपस्थिति की जांचोंपरान्त पुष्ट कर लिया होगा। अत: एक दिन बिल की लाश स्विमिंग-पूल में ऐसे पायी गयी जैसे डूब जाने से मृत्यु हुई हो।" यह सुनकर मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कोई मेरे शरीर से मेरे ही प्राण निचोड़ रहा हो और मेरे नेत्रों से अश्रु ढलकने लगे।
तभी फोन की घंटी बज उठी। ऐल्बर्ट ने फोन उठाया। बात सुनकर उसके मुख पर आश्चर्य व दुख के मिश्रित भाव आये और उसने फोन रख दिया और फिर धीरे से बोला, "तीसरे रक्तबीज ने आत्महत्या कर ली है। उसको सही रास्ते पर लाने हेतु हमारे आदमी प्रतिदिन उसे समझा रहे थे कि उसके द्वारा किये जाने वाले कार्य का परिणाम कितना भयावह एवं क्रूर होगा। इस समझाने का उस पर विद्युत-स्पर्श हो जाने जैसा प्रभाव हो रहा था क्योंकि पहले कभी उसे मानवता से प्रेम करना सिखाया ही नहीं गया था। ऐसा प्रतीत होता है कि ग्लानिवश उसने आज रात्रि हाथ की धमनी काटकर आत्महत्या कर ली है।" कुछ देर हम दोनों शांत बैठे हुए शून्य को निहारते रहे। दोनों के पास जैसे शब्द चुक गये थे। कमरे के वातावरण में कुछ सहजता आने पर ऐल्बर्ट बोला, "तुम्हारे प्राणों को अभी कई वर्ष तक गम्भीर ख़तरा रहेगा। अत: मैंने तुम्हारे लिये एक गुप्त स्थान पर रहने का प्रबन्ध कर दिया है। छद्म-नाम व छद्म-पते से तुम्हारी कम्प्यूटर कंसल्टेंसी की सेवा लिये जाने का प्रबन्ध एक संस्था में करवा दिया है। तुम्हें कार्यालय नहीं जाना होगा वरन् निवास से ही कम्प्यूटर के नेटवर्क के माध्यम से तुम अपनी सेवायें प्रदान करते रहोगे।" इसके पश्चात् ऐल्बर्ट ने मुझे उस गुप्त स्थान पर भेज दिया।
एक दिन अचानक ऐल्बर्ट का फोन आया, "कपूर, कैसे हो?" मेरे ठीक-ठाक होने की बात बताने पर उसने आगे कहा, "बिल की मौत का सदमा फ़ियोना को बहुत गहरा लगा। मैं स्वयं भी कुछ हद तक इसके लिये अपने को उत्तरदायी मानता हूँ अत: प्राय: फ़ियोना की खोज ख़बर लेता रहता हूँ। अब वह कुछ सहज हो पायी है। मैं उससे मिलने कल गया था। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि उसके मन को अब तुम्हारी तलाश है- वह तुम्हें प्राप्त कर जीवन में आये खालीपन को भरना चाहती है। सोचकर बताना।"
यद्यपि मैं यह आपबीती कहानी इतनी जल्दी उजागर नहीं करना चाहता था क्योंकि मेरे जीवन को ख़तरा अभी तक पूर्णत: समाप्त नहीं हुआ है परन्तु 7 मार्च, 1997 के ’पायनियर’ नामक दैनिक में "ह्यूमन क्लोनिंग इज़ पौसिबिल (मानवीय रक्तबीज बनाना सम्भव है)" शीर्षक समाचार जो रायटर (लंदन) जैसी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त समाचार एजेंसी के माध्यम से प्रकाशित किया गया है, को पढ़कर पाठकों को इस वास्तविकता के बताने के उत्तरदायित्व से मुकर नहीं पा रहा हूँ कि मैं एक मानवीय रक्तबीज पहले से सृजित हूँ और मेरे साथ सृजित तीन अन्य रक्तबीजों का अंत हो चुका है- इनमें से दो का उपयोग मानवों के महाविनाश के प्रयत्न हेतु किया जा चुका है और इस प्रयत्न की असफलता संयोग-मात्र ही कही जा सकती है।