जवानी न सही अभी जवाँ साँस तो है
महेशचन्द्र द्विवेदी
हालाँकि उसके याद न करने का ग़म तो है,
पर बेवक़्त हिचकियों से मिली नजात तो है।
वह आये या न आये, पर दे देता है तसल्ली
जब कह देता मसरूफ़ियत की बात तो है॥
चाहे दरिया में उफ़नता सैलाब अब न सही,
बहने के लिये बचा हुआ अभी आब तो है।
डूबने के डर से चाहे कश्ती किनारे रखे वह
पर मझधार में लाने का करता प्रयास तो है॥
जिगर के सुकून के लिये यह क्या कम है?
तूफ़ाँ न सही, पुरवाई कहीं आसपास तो है।
इन्कारे-मोहब्बत जब तलक न कर दे वह,
वस्ल न सही, वस्ल की अभी आस तो है॥
वाइज़! तू मुझसे तौबा करने को न कह
ईमाँ के डर से न पियूँ, अभी प्यास तो है।
मैं शोले क्यों बुझने दूँ, इस जिगर के?
जवानी न सही, अभी जवां साँस तो है॥
मसरूफ़ियत= व्यस्तता; वस्ल= मिलन; वाइज़= धर्मोपदेशक, प्रचारक, धार्मिक या नैतिक उपदेश देने वाला व्यक्ति, प्रवचन देने वाला
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मन चाहे मधु रंग रस घोले, तन तो सब सच बोले | बोले, दर्पण झूठ न बोले | दर्पण सब सच खोले ||