कायनात साज़िश क्यूँ करती है?
महेशचन्द्र द्विवेदीऐ अल्लाह! मोहब्बत के हर फसाने को नाकाम करने में,
तेरी सारी कायनात साज़िश क्यूँ करती है?
पहली मुलाक़ात में हर आशिक़ का लगता है दिल बैठने,
हर मा'शूक़ा नज़र मिलाने से क्यूँ डरती है?
पहले तो तू लाता है कली की पंखुड़ियों पे गुलाबी अक्स,
और भरता है उनमें मीठा नशीला रस;
फिर उसके आग़ोश में समाने को जब भौंरा होता है बेबस,
तब वह कली हया से क्यूँ लरजती है?
हर ख़िज़ां के बाद तू लाता है चमन में चाँदनी सी बहार,
लाता कोयल की कूक और पपीहे की पुकार;
भरता हवा में अँगड़ाई सी मस्ती और महकता सा प्यार,
तब चिरौटे से बचने को चिरैया क्यूँ फुदकती है?
बचपन में बेरोक खेलते हैं साजिद और सलमा साथ साथ,
करते बेहिचक गुफ़्तगू, कहते दिल की बात;
पर साजिद के होठों पर रेख व सलमा के सीने पे उभार,
आते ही हर नज़र उन्हें पाबंद क्यूँ करती है?
इश्क़ और मुश्क क्यूँ लाख छिपाये नहीं छिपते हैं कभी,
क्यूँ उनकी ख़ुशबू सूँघते फिरते हैं सभी?
दो दिलों के मिलकर साथ साथ धड़कना शुरू होते ही,
दूसरों के दिलों में आग क्यूँ सुलगती है?
अजब है तेरे जहां का क़ानून, अजब इन्सां की फ़ितरत,
प्यार की भनक पाते ही हो जाता है चौकस;
लगाता है उन पर हज़ार पहरे, करता प्रेमियों को बेबस,
उनके ख़िलाफ़ कायनात साज़िश क्यूँ करती है?
कायनात साज़िश क्यूँ करती है?