चुनाव की चाह
महेशचन्द्र द्विवेदीचुनाव की चाह बड़ी नेचुरल है,
पर पच्चीस, पचास और साठ तक लड़िये,
रिटायर होके जो हों सठियाय गये,
तो किसी नेता के द्वार पर नाक रगड़िये,
रिश्वत की कमाई से टिकट खरीदके,
आगे के लिये इंडस्ट्रिलिस्ट को पकड़िये,
गुंडा-लिस्ट थानों से मंगावाइके,
उन्हें अपना चमचा बनाने में देर न करिये।
टुटहे बक्से से जन्म-कुंडली निकालके,
ज्योतिषी जी के चरणों पर धरिये,
पूजा-पाठ विधिवत कराइये,
लक्ष्मी दिखाकर विष्णु को अपने पक्ष में करिये;
गाली बिन कबहुं बात करी नहिं
जिनसे, साष्टांग हुइ उनके पाँव पकड़िये,
दारु शराब की नदियाँ बहाइके,
वोटर सपोर्टर रिपोर्टर का होश है हरिये।
पैसा लुटाकर भीड़ को जुटाइये,
वादों में यहिं स्वर्ग उतारने के सपने गढ़िये,
विरोधी को गरियाने में हर्ज़ ही क्या है,
दंगा फ़साद तक से परहेज़ न करिये;
सुंदर सी मुम्बइया ऐक्ट्रेस बुलाइके,
अपनी चुनाव सभा में चार चाँद है जड़िये,
जातवालों को जात का वास्ता दीजे,
बाकी जनता को समरसता का पाठ पढ़ाइये।
काले धन के करोड़न लुटाइके,
इलेक्शन कमीशन को बस पंद्रह लाख बताइये,
वोटरों के लिये ट्रैक्टर-ट्राली लगाइके,
पोलिंग बूथ तक बड़े प्रेम से पहुँचाइये,
महेश के ज्ञान का निचोड़ सुनो तुम,
बूथ-कैपचरिंग किये बिन जीत न पाइये,
एम.पी. बन के इहलोक सुधारना है,
तो हर बूथ पर अपने लठबाज लगाइये।