पटाक्षेप भाग - 2

03-05-2012

पटाक्षेप भाग - 2

नीरजा द्विवेदी

भाग - 2

सुपूजित को जब यह विववरण मिला तो एक निरीह कन्या के साथ होते अत्याचार को देखकर वह तिलमिला उठे। सुपूजित ने प्रण किया कि लड़के वालों से पैसा मिलते ही वह ज्ञानेन्द्र के विरूद्ध केस रजिस्टर करायेंगे और उसको व उसके घरवालों को सबक सिखा कर रहेंगे। कुछ भी करने से पूर्व सुपूजित मल्लिका और उसके घरवालों की राय लेना चाहते थे। यही कारण था कि वह मल्लिका के साथ इलाहाबाद आये थे। मल्लिका ने ज्ञानेन्द्र को क्षमा करने की बात कहकर मृणालिनी व सुपूजित को दुविधा में डाल दिया।

सुपूजित ने मल्लिका के ज्ञानेन्द्र को क्षमा करने के आग्रह पर, कानूनी कार्यवाही करने का विचार त्याग दिया परन्तु मन ही मन ज्ञानेन्द्र और उसके परिवार को सबक सिखाने का संकल्प किया।
होली की छुट्टियों में सुपूजित और मृणालिनी नागपुर गये। नागपुर में सुपूजित का पुत्र अनिमेष इन्कम टैक्स एकेडमी में प्रशिक्षण रत था। पुत्रवधू अवन्तिका भी कुछ समय के लिये नागपुर गई हुई थी। वहाँ सुपूजित, मृणालिनी, अनिमेष और अवन्तिका ने मिलकर अनिमेष के मित्र सुनील के साथ ज्ञानेन्द्र को व उसके परिवार वालों को सबक सिखाने की योजना बनाई। ज्ञानेन्द्र के मामा का पता सुपूजित के पास था। सौभाग्यवश अनिमेष का मित्र सुनील किराये के मकान में उसी कालोनी में पास में ही रहता था। सुपूजित और मृणालिनी, अनिमेष व अवन्तिका को लेकर सुनील के यहाँ गये। योजना के अनुसार सुनील अनिमेष को लेकर ज्ञानेन्द्र के मामा श्रीनारायण बाजपेई के यहाँ गया। सुनील ने परिचय देकर कहा – “अंकल, मैं आपके पड़ोस में ही रहता हूँ।” ........
“हाँ। हाँ मैंने कई बार आते-जाते देखा है तुम्हें?” बाजपेई जी ने कहा। 

“यह मेरा मित्र अनिमेष तिवारी है। कानपुर यू.पी. का रहने वाला है। हम लोग यहाँ इन्कम टैक्स एकेडमी में ट्रेनिंग कर रहे है।”

“बहुत प्रसन्नता हुई मिलकर।” - बाजपेई जी ने कहा। बातों-बातों में सुनील ने अनिमेष को अविवाहित बताया। बाजपेई जी मन ही मन अपनी विवाह योग्य कन्या के लिये घर बैठे योग्य वर मिलने की कल्पना से पुलकित हो उठे। उन्होंने अपनी पुत्री निरंजना को चाय नाश्ता लाने की आज्ञा दी। 

“कैसे आना हुआ?” - बाजपेई जी ने पूछा।

“अंकल, अनिमेष के चाचा अपनी पुत्री के लिये लड़का ढूँढने यहाँ आये हैं। यहाँ जो लड़के उन्होंने देखे, उन्हें पसन्द नहीं आये। चाचा जी कानपुर में अपना व्यवसाय करते हैं। करोड़पति आदमी हैं। एक ही लड़की है। एम०ए० इंग्लिश पास है। बहुत सुन्दर है। इनकी केवल एक शर्त है कि लड़का शाकाहारी हो और शराब, धूम्रपान न करता हो। कहीं लड़का पसन्द आया तो घर नहीं। अनिमेष ने जब मेरे सामने यह चर्चा की तो मुझे ज्ञानेन्द्र का ध्यान आया। असल में आपका भांजा ज्ञानेन्द्र मेरे साथ यूनिवर्सिटी में पढ़ता था। वह बैंक में प्रोबेशनरी अफसर होकर गोरखपुर में नियुक्त हो गया और मैं ट्रेनिंग के लिये नागपुर आया। जब मैं आ रहा था तो उसने ही मुझे आपका पता दिया था, परन्तु मैं संकोचवश न आ सका।” - सुनील ने कहा।

इसी समय निरंजना ट्रे में चाय, बिस्कुट और समोसे लेकर अन्दर आई। बड़े आग्रह से उसने दोनों को प्लेट में नाश्ता लगा कर दिया और चाय के कप स्टूल पर रख दिये। 

बाजपेई जी के मुख से निकला – “ज्ञानेन्द्र का तो ........” अचानक मन में कुछ विचार आया और वह चुप हो गये। मन ही मन सोचा कि आसामी मालदार है। एक ही लड़की है। एक पन्थ दो काज हो जायेंगे। ज्ञानेन्द्र की शादी धनी घर में हो जायेगी और बेटी निरंजना के लिय अनिमेष को पटाने में भी आसानी होगी।

सुनील ने कहा – “अंकल आप किस सोच में पड़ गये। लड़की बहुत सुन्दर है। चाहें तो आप देख सकते हैं। चाचा, चाची और उनकी बेटी मेरी पत्नी के पास बैठे हैं।”

“आप कहें तो हम उन्हें यहाँ ले आयें या आप लोग ही वहाँ चल सकते हैं।” - अनिमेष ने कहा।

“ठीक है बेटा, तुम उन्हें यहाँ ले आओ।” - बाजपेई जी ने कुछ सोचते हुए कहा। उनके जाने पर रोष से निरंजना बोली- “पापा आप क्या बात कर रहे हैं? ज्ञानेन्द्र भैय्या की शादी आपने ही तो तय कराई है। पहले मल्लिका की शादी तोड़कर वन्दना से तय कराई और अब पुनः आप इन लोगों के चक्कर में पड़ रहे हैं ........।”

“देख लेने में क्या हर्ज है?” बाजपेई जी ने कहा।

“यदि आपकी बेटी के साथ कोई ऐसा करे तो आपको कैसा लगेगा पापा?” निरंजना ने आक्रोश प्रकट किया तो बाजपेई जी ने उसे झिड़क दिया। इसी समय सुनील, अनिमेषए मृणालिनी, सुपूजित और अवन्तिका आते दिखाई दिये। वाजपेई जी ने बड़ी आवभगत कर उन्हें बिठाया। गुलाबी चिकन के सलवार-सूट में कुँवारी कन्या के रूप में सज्जित अवन्तिका का गौरवर्ण और दिव्य रूप देखकर निरंजना भी स्तब्ध रह गई। कहना न होगा कि सबके प्रस्थान के पश्चात् सामने पी.सी.ओ. से उसी समय गोरखपुर फोन मिलाया गया और ज्ञानेन्द्र को तुरन्त ही नागपुर चले आने का आदेश दिया गया। बाजपेई जी अपनी बहिन बहनोई से, जो सौभाग्यवश अभी नागपुर में ही बड़े भाई के यहाँ थे, मिलने कल्याणपुर पहुँच गये। सबसे मन्त्रणा करने पर यह तय पाया गया कि इतना अच्छा रिश्ता हाथ से नहीं जाने देना चाहिये। निरंजना ने पूछा “आपने वन्दना के पापा को ज्ञानेन्द्र भैय्या से विवाह कराने का वचन दे दिया था। उसका क्या होगा?”

“हुँह! ये भी कोई बात हुई। कह देंगे लड़के को यह रिश्ता पसन्द नहीं है।” ........ उपेक्षा पूर्वक कहे पिता के ये शब्द सुनकर निरंजना ग्लानि और क्षोभ से जड़ हो गई, परन्तु उसने मन ही मन कुछ फैसला कर लिया।

अगले दिन कालेज से लौटते समय निरंजना के कदम अपने घर के सामने वाली गली में स्थित दो मंजिला मकान की ओर मुड़ गये। उसने सुनील को अक्सर वहाँ आते-जाते देखा था। वह घर के सामने वाली नेम प्लेट पढ़ने लगी। सीढ़ी के पास ”सुनील मिश्रा” की नेम प्लेट लगी थी। वह ठिठकी, फिर साहस बटोर कर सीढ़ी पर चढ़ गई। सामने लगी काल-बेल बजाने पर एक अनजानी युवती ने दरवाजा खोला और बोली – “कहिये किससे मिलना है?”

“कौन है विभा?” अन्दर से एक पुरुष स्वर सुनाई दिया। निरंजना सुनील का कंठ स्वर पहचानकर आश्वस्त हुई और हिचकिचा हुए बोली – “आप-आप लोगों से ही मिलना है।”

“आइये अन्दर आइये,” - विभा ने उसे अन्दर बुलाकर ड्राइंग रूम में बिठाया। 

इतने में सुनील भी अन्दर आ गया और निरंजना को वहाँ देखकर चौंक पड़ा ........”आप - आप ........।” कह वह चुप हो गया।

निरंजना आ तो गई थी परन्तु विभा और सुनील की जिज्ञासा भरी दृष्टि का सामना नहीं कर पा रही थी। वह असमन्जस में थी कि बात कैसे प्रारम्भ की जाये। विभा ने एक गिलास पानी लाकर सामने रक्खा और बोली -

“घबराइये नहीं। क्या बात है? आराम से बैठ जाइये तब बताइये। क्या कठिनाई है आपको?”

सुनील ने घड़ी देखते हुए कहा – “अरे तीन बज गये, मुझे देर हो रही है। हाँ विभा, मैं तुम्हारा परिचय करा दूँ - यह निरंजना है। इनके यहाँ कल अनिमेष के चाचा-चाची और अवन्तिका को लेकर हम लोग गये थे। यह मेरे मित्र ज्ञानेन्द्र के मामा की लड़की है। निरंजना तुम इसे अपने भाई का घर समझो। आराम से बैठो। मैं जा रहा हूँ।” - कह कर सुनील स्कूटर से एकेडमी चला गया।

निरंजना सुनील के चले जाने पर आश्वस्त हो गई और धीरे-धीरे विभा से बोली -

“भाभी। मैं आपको भाभी बोलूँ न।”

निरंजना के भोले प्रश्न पर विभा मुस्करा दी और हँसकर बोली – “हाँ-हाँ ननद रानी।” दोनों के बीच का संकोच क्षणमात्र में हँसी की फुहारों के बीच विलुप्त हो गया। कुछ देर पश्चात् निरंजना गम्भीर होकर बोली – “भाभी मैं आपसे एक बात कहना चाहती हूँ।”

“क्या?” विभा ने पूछा।

“मुझे कहते हुए बड़ी ग्लानि हो रही है, परन्तु एक लड़की की ज़िन्दगी का प्रश्न है, इस कारण घर वालों से छिपाकर मैं यह बात आपको बताने आयी हूँ।” - निरंजना ने कहा।

“क्या बात है?” विभा ने पूछा।

“मेरे पापा और बुआ-फूफा बड़े लालची हैं। मेरी बुआ का लड़का ज्ञानेन्द्र है। ये लोग अपने आपको जाने क्या समझाते हैं? पहले ज्ञानेन्द्र भैय्या का विवाह इलाहाबाद में एक अधिकारी की लड़की से तय हुआ था। अचानक उनकी मृत्यु हो गई। शादी की तैय्यारियाँ हो रही थीं। बुआ हम लोगों को बुलाने यहाँ आई थीं। यहाँ पर एक सेठ जी ने अपनी सुन्दर लड़की दिखाकर और १० लाख दहेज देने का वादा करके बुआ और मेरे पापा को भ्रमित कर दिया। केवल शादी से बीस दिन पूर्व बहाना बनाकर शादी तोड़ दी गई। मुझे बहुत दुःख हुआ पर मैं कुछ न कर सकी। मेरी बात किसी ने नहीं सुनी।” कुछ क्षण चुप रह कर उसने गहरी साँस लेते हुए आगे कहा – “कल सुनील भैय्या अपने दोस्त के चाचा की लड़की के लिये आये थे। सब लोग अवन्तिका के सौन्दर्य व धन दौलत के लालच में पड़ गये हैं। साथ ही मेरे पापा मन ही मन अनिमेष से मेरा विवाह करने की सोचे बैठे हैं ........।” 

विभा को हँसते देखकर निरंजना सकुचाई परन्तु फिर बोली - 

“मेरी बात ध्यान से सुनो भाभी। घर पर कोई मेरी बात नहीं सुनता। मैं घर वालों को सबक सिखाना चाहती हूँ। कोई मजाक है? क्या लड़कियाँ खिलौना हो गई। आज यहाँ शादी तय की। कल तोड़कर दूसरी जगह तय की। अब तीसरी के चक्कर में पड़ गये हैं।” - निरंजना ने आक्रोश प्रकट किया। 

“तुम क्या करना चाहती हो?” - विभा ने निरंजना के मुख को देखते हुए गम्भीरता से पूछा।

“भाभी घरवालों को सबक सिखाने के लिये मैंने एक योजना बनाई है। यदि हम लोग एक नाटक करें। पापा व बुआ ने पहले मल्लिका से विवाह-विच्छेद कराया। अब अवन्तिका को देखकर वन्दना को छोड़ने को तैय्यार हैं। यदि उनके सामने विवाह तय होने के पश्चात् उनकी बेटी को कोई छोड़कर चला जाये, तो उन्हें ज्ञात होगा कि ऐसा करने से कितनी ठेस पहुँचती है?” 

विभा आश्चर्यचकित हो उस लड़की को देखती रह गई।

“आप चुप क्यों हैं? मैं गम्भीरता से यह बात कह रही हूँ। आप सुनील भैय्या से बात कर लीजियेगा और कहियेगा कि नाटक के लिये किसी हीरो को तलाश कर दें। यह बात आप दोनों अपने तक ही सीमित रखियेगा।” निरंजना ने कहा और फिर मिलने का वादा करके शीघ्रता से नीचे उतर गई। अभी उसे एक काम और करना था। ऑटो रिक्शा रोककर उसने सिविल लाईन का पता बताया वहाँ पहुँच कर बड़े से लाल फाटक के अन्दर घुसकर जब उसने कॉल बेल बजाई तो सौभाग्यवश वन्दना ने ही दरवाजा खोला। निरंजना को पहचानकर उसने बड़े आदर से ड्राइंगरूम में बिठाया। दोनों सहपाठिनी भी रही थीं। उस समय वन्दना घर में अकेली थी। निरंजना ने कुछ देर इधर-उधर की बात करने के पश्चात् उससे पूछा कि – “तुम क्या ज्ञानेन्द्र भैय्या से विवाह करना चाहती हो?”

“घरवालों की इच्छा के आगे मैं क्या कर सकती हूँ? हाँ बुरा न मानों तो एक बात कहूँ एक लड़की से शादी तय करने के पश्चात् अकारण शादी तोड़ देने के कारण वह मेरी दृष्टि से गिर गये हैं।” - वन्दना ने कहा।

“तुम ठीक कह रही हो। वह मेरे भाई हैं, पर उनका यह अपराध क्षम्य नहीं है। तुम स्वयं यह रिश्ता तोड़ दो।” निरंजना बोली।

”क्या कह रही हो तुम? मैं घरवालों की आज्ञा के विरूद्ध क्या कर सकती हूँ?” - वन्दना ने कहा।

“तो बैठी रहो और अपने अपमान की प्रतीक्षा करो। कल एक और अच्छा रिश्ता आया है और तुम्हें छोड़कर वहाँ विवाह की योजना बन रही है। तुम स्वयं निर्णय करो। कल सुबह तक ज्ञानेन्द्र भैय्या आ जायेंगे और फिर तुम्हें भी तिरस्कृत कर दिया जायेगा। समय कम है। मैं तुम्हारी सहेली हूँ। यदि मुझ पर विश्वास करती हो तो तुम आज ही एक पत्र लिखो और विवाह करने के लिये उनके मना करने से पूर्व स्वयं ही मना कर दो” - भावावेश में उफनती निरंजना ने कहा और शीघ्रता से घर से बाहर निकल गई।

वन्दना कुछ समय तक स्तब्ध और किंकर्तव्यविमूढ़ बैठी रही। धीरे-धीरे उसमें चेतना का संचार हुआ। निरंजना की वाणी उसके मनोमस्तिष्क पर छाई हुई थी। उसमें आत्म विश्वास भर उठा। शीघ्रता से अपने कमरे में पहुँचकर उसने राइटिंग पैड और पेन उठाया। उसके मुख पर दृढ़ता थी। उसकी उँगलियों में पेन राइटिंग पैड पर शीघ्रता से दौड़ने लगा। उसने पत्र एक बार पढ़ा फिर गोंद से चिपका कर टिकिट लगाकर बाहर निकली। सामने पोस्ट बॉक्स में पत्र डालकर उसने शान्ति की साँस ली। उसके मन किसी की शादी तोड़कर स्वयं दुल्हिन बनने का अपराध बोध दूर हो गया था।

शाम को सुनील घर आया तो विभा के मुख से निरंजना की बातें सुनकर आश्चर्य चकित हो गया। इसी समय अनिमेष भी वहाँ आ गया। वे लोग आपस में विचार-विमर्श करने लगे कि अब क्या किया जाये? विभा ने कहा – “चलो कल शाम को हम लोग निरंजना के यहाँ चलते हैं।”

“वहाँ सबके सामने बात करने का मौका नहीं मिलेगा” - सुनील ने कहा।

“मैं निरंजना को साथ लेकर घूमने जाने का प्रस्ताव करूँगी ........ अनिमेष को पटाने के चक्कर में बाजपेई जी ‘ना’ नहीं कर पायेंगे” - विभा ने कहा।

अगले दिन विभा ने जैसा कहा था, वही हुआ। अनिमेष को सुनील के साथ देखकर वाजपेई जी गदगद हो उठे। विभा के साथ होने के कारण वह बेटी को उनके साथ भेजने से इन्कार न कर सके। वे लोग टहलते हुए बौटैनिकल गार्डेन पहुँच गये अनिमेष और सुनील सतर्कता से निरंजना की बातें सुनते रहे। जब उन्हें विश्वास हो गया कि यह निश्छल, आदर्शवादी, बहादुर लड़की है तो उनका हृदय उसके प्रति श्रद्धा से नत हो उठा। उन्होंने उससे सब बात सच-सच कहने की ठान ली। अनिमेष ने कहा – “निरंजना बहिन मुझे क्षमा करना। ज्ञानेन्द्र ने मल्लिका से शादी तोड़ दी थी तो मेरे पापा-मम्मी को बहुत ठेस लगी थी। वह उनके परिचित अधिकारी की बेटी है। त्रिपाठी जी की मृत्यु हो जाने पर मल्लिका को इस तरह अपमानित करना हम सबको बहुत बुरा लगा। मल्लिका बहुत सहृदय, बहुत अच्छी लड़की है। हम लोगों ने ज्ञानेन्द्र को सबक सिखाने के लिये नाटक किया था। वास्तव में कल जो हमारे साथ आये थे वे मेरे पापा-मम्मी हैं। अवन्तिका मेरी पत्नी है ........।”

“क्या-क्या कह रहे हैं आप?”-  निरंजना ने चौंकते हुए पूछा।

“मैं ठीक कह रहा हूँ। मेरी पत्नी अत्यन्त सुन्दर है। हम लोगों ने बड़ी कठिनाई से उसे सहमत किया। हम लोगों की योजना थी कि - अत्यधिक सुन्दर, इकलौती लड़की और पैसे वाला घर देखकर तुम्हारे पापा लालच में पड़ जायेंगे। हमें ज्ञात है कि ज्ञानेन्द्र के माता-पिता अभी भी नागपुर में हैं। अवन्तिका को देखकर वह इस शादी के जाल में फँस जायेंगे। ज्ञानेन्द्र की शादी जहाँ हो रही है उनका पता लगाकर हम उन्हें समझायेंगे कि वे स्वयं शादी स्थगित कर दें। इसके पश्चात् हम लोग भी ज्ञानेन्द्र से शादी करने को मना कर देंगे।” ........ अनिमेष ने बताया।

“आप चिन्ता न करें। ज्ञानेन्द्र भैय्या की शादी वन्दना से तय हुई है। उसका पता मुझे ज्ञात है। मैं कल ही उससे मिली थी और उसे समझाकर आई थी कि तुम स्वयं पत्र लिखकर शादी के लिये मना कर दो। मुझे पूर्ण विश्वास है कि वह ऐसा करेगी। ऐसा न हुआ तो कल आप लोग सुबह जाकर उसके पापा-मम्मी से मिलकर पूरी बात बता दें और उन्हें स्वयं इस सम्बन्ध को तोड़ने का आग्रह करें।” - निरंजना ने कहते हुए वन्दना के घर का पता लिखकर अनिमेष के हाथ में थमा दिया। अनिमेष, सुनील व विभा ने आदर से निरंजना की ओर देखा तो वह शर्मा गई। कुछ क्षण रुककर निरंजना ने सुनील की ओर देखा और बोली – “भैय्या, मेरे घर वालों को सबक सिखाने के लिये इतना दण्ड पर्याप्त नहीं है। वे आगे किसी लड़की के हृदय को ठेस न पहुँचायें और अपमानित न करें इसके लिये एक नाटक और करना पड़ेगा।”

“कौन सा नाटक?” ........ अनिमेष व सुनील के मुख से एक साथ निकला।

“पापा समझ रहे हैं कि अनिमेष भैय्या अविवाहित हैं। वह ज्ञानेन्द्र भैय्या का विवाह करके आपको अपने निकट लाना चाहते हैं ताकि आपको दामाद बना सकें।” - निरंजना अनिमेष की ओर देखकर बोली।

“मैं तो विवाहित हूँ।” ........ अनिमेष ने कहा।

“हाँ मैं जान गई हूँ।” ........ निरंजना बोली। “इसी लिये तो नाटक करने को कह रही हूँ। आप पापा को न बताइयेगा कि आप विवाहित हैं। कुछ समय पश्चात् आप उनसे मुझसे विवाह करने का वादा कर लीजियेगा। जब वह अपने परिचितों से आपका होने वाले दामाद के रूप में परिचय करा दें तब इसके पश्चात आप अन्यत्र विवाह करने की सूचना उन्हें दें।” निरंजना के कथन को सुनकर विभा बोली – “क्या कह रही हो बिना सोचे समझे? शादी विवाह क्या हँसी खेल है? सब परिचितों से मिलाने के बाद शादी तोड़ने पर तुम्हारी कितनी बदनामी होगी ........ सोचा है तुमने?”

“सब सोच समझ कर ही बोल रही हूँ। मैं एक नाटक में अभिनय कर रही हूँ। मुझ पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। हाँ लड़की की शादी टूटने पर जो अपमान, पीड़ा लड़की को और उसके घरवालों को भोगनी पड़ती है ........ इसका अनुभव मेरे घरवालों को होगा तो यही उनके लिये दण्ड भी होगा और सबक भी।” निरंजना ने आवेश में कहा तो सुनील, अनिमेष और विभा को सहमति देनी पड़ी। अनिमेष उसके नाटक में हीरो बनने को सहमत हो गया।

- क्रमशः

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