स्मृति-मंजूषा
नीरजा द्विवेदीप्रवासी भारतीयों का अपना एक संसार है। उनकी जीने की अपनी एक शैली है। लाखों नहीं करोड़ों की आबादी विदेशों में प्रवासी भारतीय के रूप में वहाँ की ज़मीन पर बसी है। कहीं पहली पीढ़ी है कहीं दूसरी या तीसरी पीढ़ी है। सबकी अपनी एक शैली है। वहाँ के होकर वहाँ का न होना, बच्चों को वहाँ रखकर, उन्हें वहाँ के प्रभावों से बचाये रखने का प्रयत्न करना, भारत से दूर उन्हें भारतीय बनाये रखना, अपनी संस्कृति और विरासत को बचाये रखने की ललक, उनमें हम सबसे कहीं अधिक है। होली हो, दीवाली हो, जन्मदिन हो, बेबी शॉवर हो, भारतीय परिवार एकत्र होते हैं। परिवार से दूर भारतीय परिवार एक बड़ा सपोर्ट सिस्टम है।
पुस्तक पढ़ेंलेखक की कृतियाँ
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- अपनी विलक्षण अनुभूतियाँ
- कुछ अनोखे अनकहे क़िस्से
- चाऊमाऊ की कहानी मेरी ज़बानी
- चोरनी या कोई आत्मा
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- लो आय गईं तुम्हारी लल्लो
- संकोच जी
- स्विटज़रलैंड के स्नेही बंधुओं एवं अंतरराष्ट्रीय साहित्यकारों को स्नेहपूर्ण भावांजलि
- स्विटज़रलैंड में शातो द लाविनी की अनोखी अनुभूतियाँ
- हेट मैरिज बनाम लव मैरिज
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