महावर की लीला
नीरजा द्विवेदीराम! जैसी मुझ पर बीती, ऐसी दुश्मन पर भी न बीते।
प्राचीन काल से भारतीय ललनाओं के सौन्दर्य उपादानों में जो सोलह श्रृंगार प्रचलित हैं उनमें महावर का विशेष महत्व है। लोकोक्ति है कि महावर लगे कोमल चरणों से सुन्दरियाँ जब अशोक के वृक्ष पर पदाघात करती थीं तब बसन्त ऋतु का आगमन होता था। सौन्दर्य उपादानों में महत्वपूर्ण ’महावर’ नई पीढ़ी के लिये सिन्धु घाटी की सभ्यता के समान अजायबघर की वस्तु बन गई है।
सादा जीवन और उच्च विचार भारतीय संस्कृति की परम्परा समझी जाती थी परन्तु आधुनिकता की अन्धी दौड़ एवं पाश्चात्य संस्कृति के प्रति अगाध प्रेम में यह परिभाषा कब परिवर्तित हो गई, मैं नहीं जानती। आज ब्यूटी पार्लर में किया गया सौन्दर्योपचार - नुची हुई तराशी भौंहें, वस्त्रों से मेल खाती अधरों की लिपस्टिक एवं नाखूनों की नेलपालिश, कटे लहराते बाल, जीन्स-टॉप या अन्य आधुनिक वस्त्राभूषण, नाभि-कटि-दर्शना साड़ी एवं अधोदर्शना या सर्वांग प्रदर्शना ब्लाउज, वस्त्रों से मेल खाते पर्स एवं ऊँची एड़ी की चप्पलें, फर्राटे से अंग्रेजी में वार्तालाप या बनकर बोलते हुए मातृभाषा हिन्दी का टॉगतोड प्रदर्शन -- अब सुशिक्षित ,सम्भ्रान्त स्त्री की परिभाषा बन गया है। भारतीय वेशभूषा -- बिन्दी, चूड़ी, लम्बी चोटी, जूड़ा, महावर, बिछुआ एवं सलीके से साड़ी पहनना, जिसे कभी सम्भ्रान्त गृह की गृहिणी की गरिमा माना जाता था, अब पदच्युत होकर अशिक्षा एवं निम्न वर्ग तथा निम्न स्तर का पर्याय समझा जाने लगा है। ऐसी भारतीय वेशभूषा में सज्जित युवतियाँ ’बहिन जी‘ कहला कर उपहास की पात्र बन जाती हैं। उस पर हिन्दी में वार्तालाप करना -- यह तो आधुनिक समाज में ठेठ देहातीपन की निशानी है।
मुझे इस परिवर्तन का प्रत्यक्ष अनुभव तब हुआ जब नवम्बर माह में दिल्ली मे ’एस्कोर्ट्स हार्ट सेन्टर‘ मे एन्जियोग्राफी हेतु भर्ती होना पड़ा। उसके पूर्व ही मैं दीपावली मनाने अपनी सास के पास ग्राम मानीकोठी जिला औरैया में गई थी। ग्रामीण परम्परा के अनुसार त्यौहार पर जब सब सुहागिनें महावर लगवा रही थीं तो मुझे भी बुलाया गया। मन ही मन मैं आशंकित थी कि अस्पताल जाने के पूर्व महावर लगवाऊँ या नहीं। अपनी सास की इच्छा का आदर करने के लिये मैंने महावर लगवा लिया। एन्जियोग्राफी के पूर्व अस्पताल का ही पाजामा एवं गाउन पहनना पड़ा। मैंने बाल खोल कर केवल चोटी बना ली एवं मेकअप करने की आवश्यकता नहीं समझी। जब मैं मेज पर लेटी थी तो वहाँ का डॉक्टर मेरे पैरों मे लगे महावर को देख कर चौंक पड़ा। पैरों के समीप पहुँच कर उसने रंग को छू कर देखा। उँगलियों से कुरेद कर बोला – "यह क्या लगा है”।
“महावर है।”
“क्यों लगाया है” --उसने प्रश्न किया।
“मेरी सास गाँव मे रहती हैं। दीपावली पर उनके आग्रह पर मैंने लगवा लिया।”
पैरों में लगा महावर, सिर में चोटी, मेकअप विहीन मुखाकृति एवं हिन्दी में वार्तालाप करना -- अब क्या कह उक्त डाक्टर को मैं नितान्त अशिक्षित गॅवार महिला प्रतीत हुई। क्षणमात्र में उसका मेरे प्रति व्यवहार परिवर्तित हो गया।
“माई कहाँ से आई हो”-- मैंने चौंक कर इधर-उधर देखा -- यह सम्बोधन मेरे लिये ही था।
“माई सीधी लेटी रहो। तुम कहाँ से आई हो।”-- मेरे पैरों को ऊँगली से कुरेदते हुए उसने प्रश्न किया।
अनमने स्वर मे मैंने उत्तर दिया - "लखनऊ से।”
“मैया ! लखनऊ तो गाँव नह है” -- वह पुनः बोला~।
“जी हाँ, लखनऊ गाँव नहीं है, परन्तु मेरी सास गाँव में रहती हैं” -- मैंने बताया।
कहना न होगा कि पैरों में महावर लगाना, बाल कटे न रखना, मेकप न करना एवं मातृभाषा के प्रति प्रेम के कारण हिन्दी में वार्तालाप करना उस दिन उक्त अंग्रेजींदाँ डाक्टर के सामने मुझे अशिक्षित एवं ठेठ गंवार महिला की श्रेणी में प्रस्तुत कर गया -- जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि डाक्टर ने मुझे इतना जाहिल समझा कि मुझे मेरी रिपोर्ट बताने के योग्य ही नहीं समझा। कुछ वर्ष पूर्व भी मुझे एक बार एस्कोर्ट्स में ही एन्जियोग्राफी करानी पड़ी थी परन्तु तब के वातावरण एवं व्यवहार में आज से धरती-आकाश का अन्तर था।
अगले दिन जब म अपनी रिपोर्ट लेने गई तो कायदे से साड़ी पहने थी। डाक्टर साहब व्यस्त थे अतः मैं पास की मेज पर रक्खी हुई अंग्रेजी की पत्रिका -’इन्डिया - टुडे‘ पढ़ने लगी। जब डाक्टर ने मुझे बुलाने के लिये मेरी ओर दृष्टि उठाई तो मेरे हाथ में पत्रिका देखकर उनका चौंकना मेरी दृष्टि से छुपा नहीं रहा। उन्होंने ध्यान से मेरी ओर देखा -
’यस प्लीज‘
“मेरी एन्जियोग्राफी कल हुई थी, मेरी रिपोर्ट अभी तक नहीं मिली है” -- मैंने प्रश्न किया।
उसने आश्वस्त होने के लिये मेरे पेपर्स को एक बार फिर ध्यान से देखा और प्रश्न किया - ”क्या नाम है आपका”।
“नीरजा द्विवेदी” उत्तर देने पर उसने पुनः प्रश्न किया -” आप कहाँ से आई हैं”
“लखनऊ से” - अब डाक्टर साहब ने बड़ी विनम्रता से मेरी रिपोर्ट मुझे दे दी और कायदे से सब बातें भी समझाईं।
अपने साथ घटित महावर की लीला का ध्यान कर मुझे भारतीय संस्कृति एवं मातृभाषा प्रेमी बहिनों से कहना है कि भारत में समय व स्थान देख कर ही अपनी संस्कृति एवं हिन्दी भाषा के प्रति प्रेम का प्रदर्शन करें अन्यथा ----
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