चीन में जो देखा
नीरजा द्विवेदीचीनी ड्रैगन सदा से उत्सुकता एवं भय का प्रतीक रहा है। सृजनगाथा संस्था के द्वारा बीजिंग एवं शंघाई में हिंदी के नवें अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन-गोष्ठी एवं सृजन सम्मान का आयोजन 20 से 25 अगस्त 2014 के मध्य किया गया। भारत के विभिन्न प्रांतों के 53 साहित्यकारों एवं साहित्य प्रेमियों का दल 19 अगस्त की रात्रि को 11 बजे दिल्ली एयरपोर्ट पर एकत्रित हो गया। मैं एवं मेरे पति श्री महेश चंद्र द्विवेदी भी इसमें सम्मिलित थे। रात के ढाई बजे के विमान से चलकर शंघाई में विमान बदलते हुए 20 की रात 8 बजे हम लोग बीजिंग पहुँचे।
चीन की यात्रा प्रारम्भ करने के पूर्व मन में अनेकों शंकायें थीं— चीन मेँ केवल चीनी भाषा का ही प्रयोग होता है, वहाँ साँप-बिच्छू, कुत्ता-बिल्ली, आदि सभी कुछ खाद्य-अखाद्य खाया जाता है, शाकाहारी लोगों को अपना इंतज़ाम स्वयं करके जाना होगा। एक दिन पूर्व ही टी.वी. पर समाचार सुना था कि चीनी सैनिकों ने सीमा का उल्लंघन किया है। ऐसे में मन में यह शंका भी उठने लगी थी कि ऐसे वातावरण में कहीं भारतीय पर्यटकों को नज़रबंद न कर लिया जाये। दूसरी ओर यह जानने की उत्कट जिज्ञासा थी कि जो देश पहले हमसे अधिक निर्धन था, जिसकी जनसंख्या यदि नियंत्रित न की जाती तो आज लगभग 200 करोड़ होती, जो इतनी तीव्रता से विकास के सोपान पार करते हुए यूरोपीय देशों को चुनौती दे रहा है, वह वास्तव में कैसा है? चीनी भाषा के अतिरिक्त किसी अन्य भाषा के प्रयोग न करने पर उनका काम-काज कैसे चलता है? यात्रा के पूर्व मन आशंकाओं और जिज्ञासाओं से ओत-प्रोत था।
बीजिंग में हमारी गाइड एवं दुभाषिया नीना थी और शंघाई में एलिस। इनके चीनी नाम अलग थे जिन्हें स्मरण रखना सम्भव नहीं था। दोनों ही अपने कार्य में निपुण एवं समर्पित गाइड थीं और हमारी चीनी मुद्रा और सिम कार्ड से लेकर रहने-खाने और घूमने की सुविधाओं का भली भाँति ध्यान रखती थीं। यहाँ पर मैं हिंदी के सम्मेलन या चीन के इतिहास के विषय में कुछ न कहकर चीन के विकास की उन बातोँ का वर्णन करूँगी जिन्होंने मेरे भारतीय मन को आहें भरने को विवश किया कि काश! मेरे देश में भी ऐसा हो पाता। यह अवश्य है कि चीन में सरकार का नियंत्रण अत्यंत कठोर है। गूगल पूर्णतः प्रतिबंधित है, जिससे हम लोग फेस बुक, व्हाट्स एप आदि का प्रयोग नहीं कर पाये। मीडिया पर सरकार का नियंत्रण इतना कठोर है कि जब नीना ने कहा कि टियेनमैन स्क्वायर पर स्टुडेंट्स की क्रांति के विषय में आप सबको हम लोगों से अधिक ज्ञान होगा तो आश्चर्य हुआ। वहाँ एक ही पार्टी है और लोगों की विवशता है कि उसी पार्टी की सरकार चुनें।
चीन ने अपनी जनसंख्या को जिस प्रकार नियंत्रित किया है वह प्रशंसनीय ही नहीं अनुकरणीय भी है। एक ओर हमारे यहाँ गली-कूचों में पिल्लों की तरह घूमते बच्चे और झुग्गियों में जीवन बिताते असंख्य लोग और दूसरी ओर चीन में सुव्यवस्थित जीवन व्यतीत करते छोटे परिवार। एलिस ने परिवार की संरचना के विषय में बताया कि यहाँ लड़कियों को महत्त्व दिया जाता है। अनेक ऐसे परिवार हैँ जिनमेँ लड़कियाँ आफिस में काम करती हैं और पुरुष घर में खाना बनाते हैं और घर का काम करते हैं। लड़कियाँ विवाह के पूर्व लड़कों से पूछती हैं कि उनके पास अपार्टमेंट है या नहीं? जिसके पास अपार्टमेंट होता है लड़कियाँ उसी के साथ विवाह करती हैं। शादी के पूर्व लड़की की माँ को लड़का 50 या 60 हज़ार युवान देता है तब शादी हो पाती है। विवाह विच्छेद का औसत 33 प्रतिशत से अधिक ही है। एलिस ने बताया कि पहले चीन में वृद्ध जनों की देखभाल अच्छी तरह होती थी परंतु अब समय बदल रहा है, लोग बूढे माँ-बाप का उतना ध्यान नहीं रखते। लोगों ने बताया था कि चीन में भिखारी नहीं होते हैं परंतु हमें कुछ स्थानों पर कुछ लोग भीख माँगते दिखाई दिये थे। यहाँ प्रत्येक युगल को केवल एक संतान की अनुमति होती है चाहे वह लड़का हो या लड़की। लड़की का महत्त्व अधिक होने पर भी कुछ लोग लड़के को वरीयता देते हैं। कुछ लोग इच्छित संतान की अभिलाषा से बौद्ध मंदिर में जाकर अर्चना करते हैं। एक बच्चे से अधिक बच्चे होने पर कहीं नौकरी नहीं मिलती, बल्कि नौकरी से निकाल दिया जाता है। यदि किसी को जुडवां बच्चे हो जाते हैं तो उन्हें एक बार के लिये क्षमा मिल जाती है। यहाँ पर लोगों को क्लब, बार आदि का शौक़ नहीं है। प्रातः 8 बजे से सायं 6 बजे तक दफ़्तर में काम करने के पश्चात लोग घर में रहना अधिक पसंद करते हैं।
शंघाई का बौद्ध जेड मंदिर |
शंघाई में 1912 के एक बौद्ध मंदिर के अतिरिक्त कोई भी धार्मिक स्थल नहीं है। जो धार्मिक स्थल थे वे ध्वस्त कर दिये गये। वहाँ मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च या किसी भी धर्मावलम्बी को कोई धार्मिक स्थान बनाने की अनुमति नहीं है। हमारे यहाँ की तरह स्थान-स्थान पर सड़क पर कब्ज़ा करने के लिये कहीं मंदिर तो कहीं मज़ार नहीँ बनीं थीं। ज़मीन पर सरकार का नियंत्रण है और उसका उपयोग जनहित के लिये होता है। बौद्ध मंदिर बहुत सुंदर और भव्य है। एलिस ने बताया कि बुद्ध जी के अनेक स्वरूप हैं। मंदिर में एक ओर बुद्ध के तीन स्वरूपों की मूर्तियाँ बनी हैं। यह मान्यता है कि बीच की मूर्ति इच्छित संतान प्रदायिनी है। लोग बेटा या बेटी की अभिलाषा से इस मूर्ति का पूजन करते हैं। उसके बगल की दाहिनी ओर बनी मूर्ति स्वास्थ्य प्रदायिनी है। बीमारी से छुटकारा पाने के लिये लोग इस मूर्ति का पूजन करते हैं। पूजन विधि अलग है। प्रांगण में एक चबूतरे पर असंख्य कमल के आकार की जलती हुई मोमबत्तियाँ रक्खी थीं। लोग पूजन के लिये इन्हें जलाकर उस स्थान पर रखते हैं। मंदिर के अगले भाग में प्रवेश करने पर बीचोंबीच मे जो चौकोर प्रांगण बना था वह हमारे यहाँ के पुराने घरों के समान था। उसमें पानी बहाने के लिये चारों कोनों में छोटे-छोटे छेद बने थे और वे खुली पतली नालियों से जुड़े हुए थे। आँगन के बीच में लगभग तीन फीट ऊँचे स्तम्भ पर ड्रैगन के नवें बच्चे की मूर्ति बनी है। मान्यता है कि यह केवल खाता रहता है और इसके शरीर में कोई निकास का द्वार नहीं है। इसका मुख बड़ा, आँखें बड़ी-बड़ी और पेट बहुत बड़ा है। इसे प्रवेश द्वार के ठीक सामने रक्खा जाता है तो यह सम्पन्नता खींचकर ले आता है। यह केवल सोना, चाँदी, हीरा-जवाहरात ही खाता है और बाहर नहीं निकलने देता। लोग इसके मुख में सिक्के डालते थे। इसकी मूर्ति के पास अनेकों सिक्के छितराये पड़े थे। इसके समीप ही एक पत्थर की ऊँची बेंच बनी थी जिसके ऊपर सुनहरे रंग से लिखे लाल काग़ज़ों को रख कर सुनहरी स्याही से स्त्रियाँ कुछ लिखती थीं और उसे गोल मोड़ कर मूर्ति के समीप ले जाती थीं। प्रवेश द्वार के सामने के कक्ष में जो बुद्ध की मूर्ति थी उसके कई हाथ थे। दाहिनी ओर के कक्ष में बुद्ध की ध्यान मुद्रा में मूर्ति रक्खी है। उसके ठीक सामने बाईं ओर शयन मुद्रा की मूर्ति है। ये मूर्तियाँ श्वेत संगमरमर की हैं और इनकी प्रतिकृति जेड की बहुमूल्य मूर्तियाँ भी हैं जो ऊपरी मंज़िल पर रक्खी हैं। एक ओर सीढ़ी चढ़ कर ऊपरी कक्ष में शांत, ध्यान की मुद्रा में मूर्ति रक्खी है। दूसरी ओर सीढ़ी चढ़ कर बुद्ध की शयन मुद्रा में मूर्ति रक्खी है। ऊपर पहुँचने पर वातावरण एकदम शांत और पवित्र प्रतीत होता है। ऊपर ही चीन की सुप्रसिद्ध मेडिसिन वाली हर्बल ग्रीन टी भी मिलती है जो बहुत महंगी है- एक छोटा सा पैकिट 200 युवान (2000 रुपये) का। पूरे मंदिर में कहीं भी गंदगी नहीं थी और जन सुविधाओं का ध्यान रखकर स्वच्छ शौचालय भी थे।
चीन में हमें सभी नागरिक सुडौल, स्वस्थ और छरहरे दिखाई दिये। युवा या वृद्ध, स्त्री या पुरुष किसी की तोंद नहीं निकली थी। वहाँ हमें दो प्रकार की मुखाकृतियाँ देखने का अवसर मिला। एक वर्ग की मुखाकृति सुडौल थीं, आँखें छोटी-छोटी थीं जो हँसने पर अदृश्य हो जाती थीं। नाक छोटी, चम्पई गौर वर्ण और माथे पर आगे को कटे हुए साधना कट बाल। किसी-किसी को देख कर अपने यहाँ के एक कुत्ते की शकल का स्मरण हो आता था जिसके माथे पर और आँखों पर बेतरतीब बाल छितराये होते हैं। पाश्चात्य वेश-भूषा में ढंके सभी के सुडौल शरीर अत्यंत आकर्षक थे। दूसरी तरह की मुखाकृतियाँ देख कर ऐसा प्रतीत होता था कि कद्दू या फुटबाल को बीच से सपाट काटकर उसके ऊपर छोटी आँख, छोटी सी नाक और छोटे भरे हुए ओंठ लगा दिये गये हैं और काली ऊन के बाल काटकर सजा दिये गये हैं। चम्पई गौर वर्ण और सुडौल शरीर सभी के थे चाहें वे बच्चे हों, युवा हों या वृद्ध हों।
चीन में बीजिंग से शंघाई तक हम लोगों ने एक्सप्रेस पैसेंजर ट्रेन से यात्रा की जिससे उसके विषय में भलीभाँति जानने का अवसर मिला। यहाँ यातायात के साधन बहुत अच्छे हैं। विश्व की सर्वाधिक तीव्र गति की ट्रेन शंघाई में है। यह ट्रेन एयरपोर्ट तक 30 किलोमीटर की दूरी 431 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से पार करती है। वहाँ पैसेंजर ट्रेनें और एक्सप्रेस पैसेंजर ट्रेनें हैं। हमें बीजिंग से शंघाई की 1400 किलोमीटर की यात्रा में नौ घंटे का समय लगा। यात्रा के दौरान हरे-भरे लहलहाते खेत दिखाई दिये या फलों के सघन वृक्ष। कहीँ भी हमें ज़मीन खाली पड़ी नहीं दिखाई दी। आठ लेन की चौड़ी सड़कों के किनारे भी सघन वृक्षों की पंक्तियाँ थीं। सड़कों पर फूलों या हरी पत्तियों की क्यारी बनाकर विभाजन रेखा बनाई गई थी। सड़कें एक दम चिकनी और साफ-सुथरी थीं। कहीं पर भी न गड्ढे थे न गंदगी या कूड़ा-कर्कट। केवल एक स्थान पर एक पतली सड़क के किनारे छोटे से गड्ढे को देख कर एक साहित्यकार बंधु ने चुटकी ली थी कि यहाँ गड्ढे को देख कर दिल को शांति मिली। हर स्थान पर स्वच्छता का यह हाल था कि कहीं भी ज़मीन पर बैठने में हिचक नहीं होती थी। ट्रेन की पटरियों से लेकर स्टेशन तक तो सफाई थी ही, ट्रेन के अंदर लगातार सफाई की जा रही थी। कोच में बड़ा सा डस्टबिन रक्खा था इसके बावजूद काली ड्रेस और हाथ में ग्लव्ज़ पहने लड़कियाँ पौलिथिन का बड़ा बैग लेकर यात्रियों के सामने कई बार घूम जाती थी कि लोग कूड़ा उसमें डालें।
द गार्डेन- एक मनभावन बार्गेनिंग मार्केट |
बीजिंग से लेकर शंघाई तक जितने क़स्बे या शहर पड़े सभी स्थानों पर पक्की, बहुमंज़िली इमारतें दृष्टिगोचर हुईं। कुछ स्थानों पर जहाँ गाँव थे, वहीँ एक या दो मंज़िल के पक्के भवन दिखाई दिये जिनकी छतें खपरैल की थीं। चीन में बहुत बर्फ पड़ती है इसलिये छत खपरैल की बनाई जाती है। कहीं भी हमारे यहाँ की तरह झुग्गी-झोपड़ियों का अम्बार नहीं लगा था। एलिस ने बताया कि चीन में ज़मीन पर सरकार का अधिकार होता है। फ्लैट बनते हैं वे लीज़ पर मिलते हैं। जो घर ख़रीदता है उसका अधिकार 70 वर्ष तक होता है इसके बाद फिर धन देना पड़ता है। यहाँ पर घर ख़रीदने को प्रथम वरीयता दी जाती है। 900 वर्गफुट के क्षेत्रफल में अधिकांश फ्लैट बनाये जाते हैं। इतने छोटे स्थान पर केवल एक युगल और एक बच्चा ही रह सकता है। चीन के विकास की गति इतनी तीव्र कैसे हो पाई सम्भवतः इसका कारण सरकार का नियंत्रण है और नागरिकों की अनुशासनप्रियता है। दिन में कहीं भी कोई व्यक्ति मटरगश्ती करते नहीं दिखाई दिये। दिन में शहर में घूमते हुए मन में विचार आता कि चीन की जनसंख्या आख़िर है कहाँ? इस प्रश्न का समाधान हमें यह मिला कि प्रातः 8 बजे से सायं 5 बजे तक सब लोग दफ़्तरों या कारखानों में अपने-अपने कार्य में व्यस्त रहते हैं अतः बहुत कम लोग सड़क पर दिखाई देते हैं। शाम को दफ़्तरों से निकलते मधुमक्खियों जैसे झुंड को देख कर आश्चर्य होता है कि अरे इतने लोग अभी तक बहुमंज़िली इमारतों के अंदर कैसे छिपे हुए थे। हमारे यहाँ के दफ़्तरों की तरह वहाँ पर चाय के दौर नहीं चलते और काम के बीच क्रिकेट मैच का व्यवधान नहीं होता। हमें आवासों, दफ़्तरों या गलियों में न कहीं पान की पीक दिखाई दी न लघुशंका के चिन्ह और दुर्गंध। हर व्यक्ति बहुत परिश्रमी है और समय का सदुपयोग करता है। हमारे समूह को किसी कार्य हेतु समय से देरी करने पर एलिस बहुत खीज जाती थी और जो कुछ कह देती थी उसे सुन कर कुछ लोग लज्जित होते थे परंतु कुछ पर इसका कोई असर नहीं पड़ता था।
समय का सदुपयोग करना कोई चीन से सीखे। एलिस ने बडे गर्व से बताया कि हमारी सारी प्रगति 25 से 30 वर्ष के बीच हुई है। यदि यहाँ कोई योजना बनती है कि उसे 1 वर्ष में पूरा करना है तो लोग जुट जाते हैं और उसे 4 माह पहले ही पूर्णता प्रदान कर देते हैं। इसमें कुछ अतिशयोक्ति भी हो तो भी हमारे लिये शर्म से डूब मरने की बात है कि जो योजना 5 वर्ष के लिये बनती है वह 15 से 25 वर्ष ले लेती है और उसकी लागत में कई गुना वृद्धि हो जाती है।
चीन की सरकार ने पर्यटकों को लुभाने के लिये हर प्रकार के उपाय अपनाये हैं। बीजिंग में एक्रोबैटिक कल्चरल शो व शंघाई में नाइट शो देखने का अवसर मिला। प्राचीन एक्रोबैटिक्स व नृत्यों की पृष्ठभूमि को आधुनिक तकनीक व प्रकाश का सम्मिश्रण करके अत्यंत आकर्षक बनाया गया है। शो प्रारम्भ होने के पूर्व विदूषक का प्रवेश और बीच-बीच में उसके कार्य कलाप कार्यक्रम को रोचक बना देते हैं और दर्शकों को हँसने को मजबूर कर देते हैं। शंघाई के शो में सर्कस के स्वरूप का और जिम्नास्टिक का आधुनीकरण किया गया है। सर्कस में अधिकांश वे ही करतब थे जो हमने अपने यहाँ बचपन में देखे थे। जानवरों के कौशल नहीं थे। मौत के कुएँ में 8 मोटर साइकिल एक साथ चलते देखकर साँस रुकने लगती थी। थियेटर में निरंतर शो होने से स्थानीय कलाकारों के जीवन यापन का स्थाई साधन बन जाता है और उन्हें भरण-पोषण के साथ सम्मान भी मिलता है। अपने देश में भी इस प्रकार के उपाय अपनाकर लोक कला व संस्कृति को जीवित रक्खा जा सकता है और इससे कलाकारों का सम्मानपूर्ण भरण-पोषण भी हो जायेगा।
शंघाई में ह्वांगपो नदी में शाम सात बजे से आठ बजे तक सुसज्जित विशाल नौकाओं द्वारा पर्यटकों को 20 मील का नौकाविहार कराना एक महत्त्वपूर्ण आकर्षण है। क्रूज़ की भव्यता दर्शंनीय है। ह्वांगपो नदी के दोनों तटों पर बनी भव्य, रंग-बिरंगे प्रकाशों से सुसज्जित बहुमंज़िली अट्टालिकाओं की सुंदरता अत्यंत चित्ताकर्षक प्रतीत होती है। दिन में नौकाओं का सामान लाने, ले जाने के लिये प्रयोग किया जाता है। एलिस ने बताया कि शंघाई की सरकार शंघाई को प्रकाशित करने के लिये प्रतिदिन 1 मिलियन डॉलर व्यय करती है।
चीन सरकार ने पर्यटन के साथ कारखानों के विकास के लिये भी ठोस उपाय किये हैं। हमारे साहित्यकार बंधुओं का इरादा कारखानों को देखने का नहीं था परंतु एलिस ने बताया कि हमें कौंन्ट्रैक्ट के अनुसार कारखाने में जाना पड़ेगा और 40 मिनट वहाँ रुकना पड़ेगा। आप चाहें कुछ न ख़रीदें पर जाना आवश्यक है। रेशम बनाने व रेशमी वस्त्र बनाने का कारखाना हमें दिखाया गया। वहाँ के वस्त्रों की क्वालिटी बहुत अच्छी थी और मूल्य भी तदनुसार बहुत अधिक थे। एक अन्य कारखाने में जेड नामक बहुमूल्य पत्थर से मूर्तियाँ व डेकोरेशन पीसेज़ बनाने का कार्य हो रहा था। जेड के आभूषण भी थे। कुछ मूर्तियाँ वाकई बहुत सुंदर थीं पर उनका मूल्य भी लाखोँ युवान मे था। पर्ल के कारखाने में मोती बनाने व आभूषण बनाने की प्रक्रिया चल रही थी। इससे उनके उत्पादनों का विज्ञापन होता है और उनके उत्पादों की कुछ न कुछ बिक्री तो हो ही जाती है। अपने बाज़ारों में सस्ते चीनी उत्पादों की बहुलता देखकर लोग सोचते हैं कि चीन में वस्तुएँ सस्ती मिलेंगी, परन्तु यह भ्रम है। यह अवश्य है कि वहाँ कई बारगेनिंग मार्केट हैं जहाँ लोगों की भाव-ताव करने की क्षमता के आधार पर वस्तुएँ औने-पौने दाम पर मिल जाती हैं। मेरे पौत्र सौम्य रंजन ने जैकी चैन का पोस्टर लाने के लिये कहा था। यह देख कर मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं था कि मुझे किसी भी बाज़ार में जैकी चैन क्या किसी भी हीरो, हीरोइन, नेता या देवी-देवता का फोटो या पोस्टर कहीं नहीं दिखाई दिया। टियेनमैन स्क्वायर पर अवश्य माओ का एक बड़ा सा चित्र लगा था। गाइड ने बताया कि जैकी चैन और ब्रूस ली भारत में लोकप्रिय हैं। यहाँ शाहरुख खान और आमिर खान लोकप्रिय हैं। एलिस स्वयं शाहरुख खान और आमिर खान की फैन थी। उसने आमिर की थ्री ईडियट्स तीन बार देखी थी।
शंघाई से 30 मील की दूरी पर चीन के महान कवि लो शन का निवास स्थान था। चीन की सरकार ने बड़े सम्मान से लो शन के उपयोग की वस्तुओं को म्यूज़ियम बना कर रक्खा है। लो शन के आवास को भी भली भाँति संरक्षित किया गया है।
घूमते समय जहाँ कहीं भी चीनी स्त्रियाँ व बच्चे मिलते थे तो अधिकांशतः मिलनसार थे। चीनी भाषा में अभिवादन करने पर लड़कियाँ बड़ी प्रसन्नता से मिलतीं थीँ और साथ में फोटो खिचवातीं थीँ।
प्रारम्भ में हमें यह भय था कि बिना चीनी भाषा के ज्ञान के हमारा काम कैसे चलेगा। 53 लोगों के बड़े समूह में गाइड एलिस हर समय सबके साथ नहीं रह सकती थी। आश्चर्य की बात यह है कि पारस्परिक संकेतों की भाषा के द्वारा सम्वाद से हर स्थान पर काम चल जाता था।
भोजन के विषय मे हम भारतीय शाकाहारी लोग अत्यधिक आशंकित थे। श्रीमती रंजना अरगडे, कुमारी नयना डेलीवाला, श्रीमती पटनायक, श्रीमती ललितम्मा आदि तो अपने भोजन के विकल्प स्वरूप सत्तू, खाखरा आदि लेकर आई थीं। इनमें कुछ लोग प्याज भी नहीं खाती थीं। बीजिंग और शंघाई दोनो स्थानों पर भारतीय रेस्त्रां हैं। बीजंग में गैंजेज़ इंडियन रेस्ट्रां में तो भोजन बहुत स्वादिष्ट मिला। इंडियन रेस्ट्रां गैंजेज़ के मैंनेजर श्री ज्ञान. पी. सपकोटा ने हर प्रकार से सबका ध्यान रक्खा। यहाँ तक कि मेरे सोमवार के व्रत के दिन मुझे व्रत में लेने लायक सामग्री उपलब्ध हो गई। माँसाहारी लोगों के लिये भी अधिकतर फिश या चिकन का मीट था। जिस होटल में रुकते थे ब्रेकफास्ट वहीं मिलता था। ब्रेकफास्ट में—फल, तरबूज, खरबूजा, खीरा, भुट्टे के उबले हुए टुकड़े, सब्ज़ियाँ छौंकी हुई, करेले के टुकड़े चिप्स की तरह काटकर छौंके हुए, सब्ज़ियों के छिलके छौंके हुए, ब्रेड-बटर, अंडे उबले, चाय, जूस, दूध आदि उपलब्ध होता था।
चीन की मुद्रा युवान कहलाती है। भारतीय 10 रुपये का 1 युवान होता है। 1, 2, 5, 10, 50, और 100, युवान के नोट का अधिकतर प्रचलन है।
बस व ट्रेन से यात्रा के दौरान शहरों और क़स्बों- सभी स्थानों की स्वच्छता, भव्यता, प्रकाश की व्यवस्था, यातायात की व्यवस्था एवं सभी बहुमंज़िली आवासों के ऊपर बाहर लगे एयरकंडीशनरों ने मेरा ध्यान चीन के सामान्य नागरिकों के रहन-सहन की ओर विशेष रूप से आकर्षित किया। केवल कुछ स्थानों पर कुछ पुराने से घर दिखाई दिये। हमारी जैसी ख़स्ताहाल झुग्गियाँ और आवारा गाली देते बच्चों के समूह कहीं नहीं दिखाई दिये। चीन में सभी आफ़िस सेंट्रली एयरकंडीशंड हैं। समस्त बहुमंज़िले भवन बना कर बाकी धरती का उपयोग कृषि, सघन फलदार वृक्ष या हरियाली लगाकर किया जा रहा है परिणामस्वरूप पर्यावरण एकदम शुद्ध है। सड़कें पक्की होने के कारण न कहीं धूल-धक्कड़ था न कहीं पर धुआँ या कारखानों के मलबों की दुर्गंध थी। एक विशेष बात और देखने को मिली कि चीन में स्त्री-पुरुष बच्चे सभी स्वस्थ और छरहरे देखने को मिले। एलिस ने बताया कि बहुमंज़िली आवासों में लिफ़्ट छठी मंज़िल से लगाते हैं। हो सकता है कि उनका परिश्रम ही लड़कियों को कनकछड़ी और लड़कों को कनकस्तम्भ के रूप में परिवर्तित कर देता हो।
चीन की यात्रा हमारे लिये बहुत ज्ञानवर्धक और मनोरंजक रही। केवल दो-तीन बातें हृदय कचोट रही हैं। मैं हवाई जहाज़ एवं ट्रेन में अपनी सीट पर बैठी यह देख रही थी कि हमारे कुछ भारतीय विद्वद्जन वहाँ के स्वच्छ शौचालयों में ज़मीन पर नैपकिन और पानी छितराकर उनकी दुर्दशा करके आये थे। बाहर खड़े चीनी लोग एक बार शौचालय पर दृष्टि डालते थे और दूसरी बार हमारे साथियों पर। उनकी वह हिकारत भरी दृष्टि यह सोचने को विवश करती है कि हमारे देश से विदेश जाने वाले शिक्षित—अशिक्षित सभी लोगों को शौचालय के सही उपयोग की विधि बता कर विदेश जाने देना चाहिये। एक व्यक्ति का व्यवहार पूरे देश की छवि बनाता या बिगाड़ देता है।
चीन ने 25 से 30 वर्षों में अपनी असंख्य जनसंख्या नियंत्रित करके, निर्धनता की बेड़ियाँ तोड़ कर अपने देश को विश्व के अग्रणी देशों की पंक्ति में ला खड़ा किया है। एक हम हैं जो विकास तो करते हैं परंतु अनियंत्रित जनसंख्या हमें आगे बढ़ने नहीं देती। यदि यही गति रही तो हम कभी चीन की बराबरी नहीँ करे पायेंगे।
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