किट्टी पार्टी
डॉ. मुकेश गर्ग ‘असीमित’“सुनो, तुम आज खाना जल्दी खा लेना, आज घर में किट्टी पार्टी है। तुम सोमिल को लेकर आज कमल भैया के यहाँ चले जाना, हाँ!”
महेश ने यह सुना तो बिना कोई जवाब दिए, अपनी खीज को छिपाते हुए मुँह दूसरी तरफ़ कर लिया। आज संडे था, महेश के ऑफ़िस की छुट्टी। एक संडे ही तो मिलता है परिवार के साथ समय बिताने का, और ऊपर से यह सविता की किट्टी पार्टी . . . महीने का एक संडे बर्बाद कर देती है। अब मैडम व्यस्त हो जाएँगी चार घंटों के लिए, पीछे वह और उनका छह साल का बेटा। परेशान रहता है महेश, सविता की इन किट्टी पार्टियों से। सिर्फ़ समय ही नहीं, हर महीने का दो हज़ार का अतिरिक्त ख़र्चा। और फिर बारह महीने में एक बार इनके घर पर भी पार्टी—आज वही दिन था। महेश के छोटे से दो रूम बीएचके फ़्लैट में किट्टी पार्टी का क़ब्ज़ा!
महिलाओं की पार्टी में पुरुष की एंट्री? ना बाबा ना! महेश को जाना ही था। पर खीज कम नहीं हुई। जाते-जाते आख़िर ताना मार ही दिया, “यार सविता, तुम जानती हो कितना तंग चल रहा है, यह मार्च क्लोज़िंग का महीना है . . . इस बार सैलरी भी नहीं मिली, टीडीएस का रिफ़ंड भी नहीं आया। मार्च क्लोज़िंग चल रही है तो ऑडिट का बोझ अलग, सब गड़बड़ हो गया है। ईएमआई का भुगतान पेंडिंग चल रहा है, सविता . . . कितनी बार कहा तुमसे कि यह किट्टी-विट्टी बंद करो यार। फ़ालतू के दो हज़ार रुपये हर महीने। ऊपर से आज की पार्टी में उड़ जाएँगे आठ-दस हज़ार!”
सविता कुछ नहीं बोली। एक मासूम सी मुस्कान ज़रूर उसके चेहरे पर उतर आई थी। उसने कोमल स्वर में महेश को यह ज़रूर सुना दिया, “महेश . . . तुम भी तो जाते हो न अपने दोस्तों के पास, शाम को कई बार अपने दोस्त के साथ ड्रिंक-ड्राइव पर . . . मैंने कभी टोका तुम्हें? मेरा भी तो एक पर्सनल स्पेस है . . . तुम ऑफ़िस में काम करते हो तो तुम्हारा समय कट जाता है। मेरे लिए बताओ, दिन का समय कहाँ स्पेंड करूँ . . . सोमिल स्कूल चला जाता है . . . एक घरेलू महिला के लिए किट्टी पार्टी का ही तो सहारा है। इसके लिए मना मत करो यार . . . बारह महीने में एक बार ही तो मौक़ा मिलता है मुझे। अब दूसरों के घर जाकर पार्टी करें और अपनी बारी आए तो मना कर दें, ऐसा तो नहीं चलेगा ना!”
महेश निरुत्तर चला गया, लेकिन खीज छूटने का नाम नहीं ले रही थी। मन में दस शिकायतें उमड़ पड़ी थीं सविता के लिए। ख़ूब समझाया था पापा ने, ‘वर्किंग लड़की से शादी करो’, लेकिन उसे ही न जाने क्या सूझी . . . नहीं, घर का ख़्याल रखेगी, बच्चों को सँभालेगी। नौकरी तो मेरी अकेले की ही काफ़ी है घर सँभालने के लिए। अब भुगतो।
दोस्त के यहाँ भी अनमना सा ही रहा, बस इंतज़ार कर रहा था कि घर से फोन आए कि पार्टी ख़त्म हो गई है, ताकि वापस जाकर आज अपनी पूरी भड़ास निकाल सके सविता पर।
इंतज़ार की घड़ी समाप्त हुई, सविता का फोन आ गया, चहकते हुए, “आ जाइए बॉस, घर आपका, आपके सुपुर्द है जनाब!” मज़ाकिया अंदाज़ में सविता ने कहने का मौक़ा नहीं छोड़ा।
महेश पहुँचा, जैसे ही दरवाज़ा खोला, सविता ने आगे बढ़कर महेश को गले लगा लिया। बेहद ख़ुश थी सविता। उसने महेश का हाथ पकड़ा और एक लिफ़ाफ़ा उसके हाथ में रख दिया। महेश ने पूछा, “क्या है ये?”
“अरे तुम ही खोल लो, देखो क्या है!”
महेश ने लिफ़ाफ़ा खोला तो देखा पूरे दो लाख चालीस हज़ार रुपये थे उसमें। “लो . . . तुम्हारा टीडीएस का रिफ़ंड, दीवाली का बोनस सब आ गया!”
महेश कुछ समझ नहीं पाया, “ये क्या है?”
“अरे, आज की किट्टी मेरे नाम की निकली थी न . . . तभी तो आज पार्टी रखी थी यहाँ!”
महेश भौचक्का सा खड़ा रहा, अपनी सोच की संकीर्णता पर आश्चर्यचकित। सविता की सूझबूझ, घर की ज़िम्मेदारियों में उसके योगदान और हर मुश्किल में उसके सहयोगी रूप को देख वह अभिभूत हो उठा। आज सविता उसे एक सच्ची देवी स्वरूपा सी लगी।
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प्रभावी रचना