जश्न-ए-नया साल में
आशीष तिवारी निर्मलन जाने कैसे-कैसे जंजाल में पड़े हुए हैं लोग,
दिखावे के लिए जश्न-ए-नया साल में अड़े हुए हैं लोग।
वही चीखें, घुटन, बेबसी महामारी कोरोना ग़म,
फ़र्श पर यहाँ-वहाँ अस्पताल में पड़े हुए हैं लोग।
अब आएँगे या तब आएँगे अच्छे वाले दिन,
साहब के बिछाए इसी जाल में पड़े हुए हैं लोग।
भुखमरी, ग़रीबी बेरोज़गारी नित बढ़ती महँगाई,
न पूछो कि अब किस हाल में पड़े हुए हैं लोग।
मंज़िल का पता-ठिकाना तो पता है सबको मगर,
अपनी-अपनी अलग चाल में पड़े हुए हैं लोग।