आना चाहती हो मगर

01-09-2022

आना चाहती हो मगर

आशीष तिवारी निर्मल (अंक: 212, सितम्बर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

ये बात तुम नहीं तुम्हारे नैन कहते हैं
मुझसे मिलने को बड़े बेचैन रहते हैं। 
 
आना तो चाहती हो मगर आओ कैसे? 
कश्मकश में तुम्हारे दिन-रैन रहते हैं। 
 
उठवा लेने की धमकी देती हो मुझको
जब कि मेरे बँगले पे गनमैन रहते हैं। 
 
‘निर्मल’ पावन गंगा ही ना समझ मुझे
हम कभी ‘गोवा’, कभी ‘उज्जैन’ रहते हैं। 
 
मेरी शख़्सियत का अंदाज़ा न लगा तू
तेरे मुहल्ले में मेरे ‘जबरा फैन’ रहते हैं।

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