इश्क़ बेहिसाब

01-05-2022

इश्क़ बेहिसाब

आशीष तिवारी निर्मल (अंक: 204, मई प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

सारे काम वो लाजवाब कर बैठी
इश्क़ हमसे वो बेहिसाब कर बैठी। 
 
सब देखते रहे मुुझे अख़बार की तरह 
वो मेरे चेहरे को किताब कर बैठी। 
 
ना पीना कभी भी यह देके क़सम
ख़ुद की आँखों को शराब कर बैठी। 
 
वफ़ाओं का मिला यह सिला उसे
कई रातों की नींद ख़राब कर बैठी।
  
लिपट कर ख़ूब रोए हम दोनों ही 
वो अपनी वफ़ा का हिसाब कर बैठी। 

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