हमें मोहब्बत सिखा रहे हैं
आशीष तिवारी निर्मलपानी में काग़ज़ का घर बना रहे हैं लोग
सूरज को ही अब रोशनी दिखा रहे हैं लोग
हमीं से सीखकर मोहब्बत का ककहरा
आज हमें ही मोहब्बत सिखा रहे हैं लोग
है पता जबकि की टाँग की टूटेंगी हड्डियाँ
फिर भी हर बात पर टाँग अड़ा रहे हैं लोग
थी माँगी दुआएँ जिनके लिए मैंने कभी
बद्दुआओं से मुझको नवाज़े जा रहे हैं लोग
जग हँसाई की चिंता को कर दरकिनार
ख़ून के रिश्ते से ही सींग लड़ा रहे हैं लोग
सियासी शैतान हवाओं को बिना समझे ही
मज़हब के नाम पे ख़ून बहा रहे हैं लोग
क़लम से क़ायम, दिलों पे बादशाहत अपनी
पर जानबूझ के मेरा दिल दुखा रहे हैं लोग