ऐसे समेट लेना मुझको

15-04-2025

ऐसे समेट लेना मुझको

डॉ. पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’ (अंक: 275, अप्रैल द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

तुम जब भी मिलो
मुझसे
मुझे ऐसे समेट लेना
जैसे कि हम प्रथम बार
मिले हों . . .
 
समेट लेना ऐसे
कि–
मेरा सारा दर्द
निथर जाए
और—
मेरी सारी व्यथाएँ
दम तोड़ दें
मेरे अंदर ही
धराशायी हो जाएँ
मेरी सारी उदासियों की
असंख्य मंज़िलें
 
जब मिलो न मुझसे
तो ऐसे समेट लेना
जैसे एक टूटते मकां को
समेटा जाता है, 
उस मकां को टूटता देख
रो पड़ता है
उसका एक-एक कोना . . . 
 
ऐसे ही समेट लेना
कि मैं बिलखकर रो पड़ूँ
अपने मकां को
बचाने के लिए . . .
और—
मेरे आँसू बहा ले जायें
मेरे एकाकीपन को . . .
रह जाये उसमें केवल
तुम्हारा प्रेम . . .
 
ऐसे समेट लेना
तुम मुझको . . .!! 

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