आनंद छन्द माला (भाग-1)
डॉ. नितिन सेठी
(काव्य और वैचारिकता का मणिकांचन संयोग)
पुस्तक: आनंद छंद माला (भाग-1)
प्रणेता: जितेन्द्र कमल आनंद
मूल्य: साहित्यिक मूल्यांकन
पृष्ठ: 108
मानव की संगीतप्रियता किसी से छिपी नहीं है। जब बालक जन्म लेता है तब स्वाभाविक रूप से रोता है। ध्यान से देखा जाए तो उसके रोने में भी एक लय, एक गति होती है। जन्म से ही मानव कुछ न कुछ गुनगुनाया करता है। इस प्रकार छन्द भी उतना ही पुराना है जितना स्वयं मानव है। छन्द शब्द संस्कृत की ‘छद्’ धातु से ‘असुन’ प्रत्यय लगाने से बना है। प्रसन्न करना, आच्छादित करना, बाँधना आदि अर्थों में यह प्रयुक्त किया जाता है। छन्द का प्रयोग वैदिककाल से ही मिलता है। कहते हैं कि वैदिक ऋषियों ने प्राकृतिक प्रकोपों से बचने के लिए स्वयं को मन्त्रों से अच्छादित कर लिया था। इस प्रकार छन्द का आरंभिक प्रयोग आच्छादित के अर्थ में ही मिलता है। पुरुष सूक्त में छन्द की उत्पत्ति दर्शायी गई है:-
तस्माद्यज्ञात् सर्वहुतऽऋचः सामानि जज्ञिरे।
छन्दाँसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत॥
उस विराट् यज्ञ-पुरुष से ऋग्वेद एवं सामवेद का प्रकटीकरण हुआ। उसी से यजुर्वेद एवं अथर्ववेद का प्रादुर्भाव हुआ अर्थात् वेद की ऋचाओं का प्रकटीकरण हुआ। शास्त्रों में तो यहाँ तक कहा गया है कि सम्पूर्ण सृष्टि ही छंदोमय है। सृष्टि में अपनी एक विशिष्ट गति है, विशिष्ट लय है। इसी का शाब्दिक और साहित्यिक रूप छन्द के रूप में हमारे समक्ष आता है।
आचार्य पिंगल ने प्राचीनकाल में अनेक प्रकार के छन्दों का निर्माण किया था, इसी कारण उन्हें छन्दशास्त्र का प्रणेता कहा जाता है। संस्कृत में आचार्य पिंगल का ‘छन्दशास्त्र’, जयदेव का ‘जयदेवच्छंदस’; प्राकृत में स्वयंभू का ‘स्वयंभूच्छंदस’, हेमचन्द्र का ‘छन्दोनुशासन’; हिन्दी में भिखारीदास का ‘छन्दोर्णव पिंगल’, जगन्नाथ प्रसाद ‘भानु’ का ‘छन्द:प्रभाकर’, परमानंद का ‘श्री पिंगल पीयूष’ जैसे ग्रन्थ सुप्रतिष्ठित हैं। इसके बाद वर्तमान समय में भी अनेक विद्वानों ने समय-समय पर छन्दशास्त्र पर आधारित ग्रन्थ प्रस्तुत किए हैं।
‘आनंद छन्द माला’ (भाग-1) रामपुर के प्रख्यात् कवि और वरिष्ठ साहित्यकार जितेन्द्र कमल आनंद जी की कृति है जिसमें 108 प्रकार के छन्दों का संग्रह है। प्रस्तुत पुस्तक में जितेन्द्र कमल आनंद जी ने कुल 108 विभिन्न प्रकार के छन्दों को उदाहरण सहित काव्यात्मक अभिव्यक्ति दी है। प्रस्तुत ग्रन्थ में छन्दशास्त्र और साहित्य शास्त्र–दोनों ही मणिकांचन रूप से उपस्थित हो गए हैं। जितेन्द्र कमल आनंद ने स्वरचित काव्यपंक्तियों के माध्यम से निर्दिष्ट छन्द का स्वरूप और उसके उदाहरण एक साथ दर्शाए हैं। अनेक स्थानों पर तो छन्द की परिभाषा उदाहरण के माध्यम से ही स्वतः स्पष्ट हो गई है। छन्द का वर्ण वृत्त और मात्रा वृत्त, उसके गण आदि भी दर्शाए गए हैं। विशिष्ट बात यह है कि प्रस्तुत ग्रन्थ में जिन 108 छन्दों को रखा गया है, उनमें केवल हिन्दी भाषा में ही प्रचलित छन्द नहीं हैं, अपितु संस्कृत और प्राकृत के छन्द भी यहाँ उदाहरण सहित प्रस्तुत किए गए हैं। उल्लेखनीय है कि प्राचीन काल से लेकर आज तक छन्द को चार वर्गों में विभाजित किया गया है—वैदिक स्वरवृत्त, लौकिक वर्णवृत्त, मात्रावृत्त और तालवृत्त या मुक्त छन्द। जितेन्द्र कमल आनंद ने इन चारों वर्गों के चुने हुए छन्दों को अपनी पुस्तक में रखा है। ऋग्वेद के सात प्रसिद्ध छन्द गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप्, वृहती, विराट, त्रिष्टुप् और जगती हैं। पुस्तक में कवि ने अनुष्टुप और गायत्री छन्द को सोदाहरण दर्शाया है।
प्रस्तुत कृति में कवि ने छन्दों का आरम्भ ‘अनुष्टुप’ छन्द से किया है जो उचित ही है। ज्ञातव्य है कि अनुष्टुप छन्द वैदिक स्वरवृत्त है। इसकी संगीत-सृष्टि उदात्त, अनुदात्त और स्वरित ध्वनि प्रकारों पर आधारित होती है। आदिकवि वाल्मीकि द्वारा प्रणीत अनुष्टुप छन्द साहित्य जगत में पर्याप्त रूप से प्रतिष्ठित है। अनुष्टुप छन्द के कुल चौबीस श्लोकों से पुस्तक का आरम्भ किया गया है। इस छन्द में चार पद होते हैं। प्रत्येक पद में आठ वर्ण होते हैं। इस छन्द के प्रत्येक पद का छठा वर्ण गुरु होता है और पंचम वर्ण लघु होता है। प्रथम और तृतीय पद का सातवाँ वर्ण गुरु होता है तथा दूसरे और चौथे पद का सप्तम वर्ण लघु होता है। इस प्रकार पदों में सप्तम अक्षर क्रमश: गुरु-लघु होता रहता है, आदिकवि वाल्मीकि द्वारा उच्चारित प्रथम श्लोक अनुष्टुप छन्द में ही है। ‘गायत्री’ छन्द 24 मात्राओं के योग से बना है। गायत्री छन्द में आठ-आठ अक्षरों के तीन चरण होते हैं। अनुष्टुप और गायत्री वैदिक छन्दों के साथ ही गीतिका, गीतिका मूल, गीतिका अखण्ड छंद, गीतिका द्विपदी, अपराजिता, अनुकूला, आनंदवर्धक, वनमाली, सोरठा, कुण्डलिया, कुकुभ, रूपमाला, उपेन्द्रवज्रा, रूबाई, कमल, कुण्डल, कौंच, पंच-चामर, पीयूष, गोपी, सारिका, गुंजार, मनोरमा, हरिगीतिका, मधुमालती, छप्पय, मुक्तामणि, मुक्तक, मल्लिका, शिखरिनी, शिखरिणी, ताटक, त्रिपदिका (जनक छंद), सरस, दुर्मिल सवैया जैसे सरस, उपयोगी और काव्य में बहुप्रयुक्त छन्दों पर उदाहरण सहित संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत किया गया है। यह तथ्य स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि कविवर जितेन्द्र कमल आनंद की संस्कृत, प्राकृत और हिन्दी के अनेक पुराने और नये छन्दों पर न केवल गहरी पकड़ है अपितु इन छन्दों को समझाने और उदाहरण सहित स्पष्ट कर पाने में भी वे पूर्णतया निष्णात और सिद्धहस्त हैं।
छन्दों के लक्षण संगृहीत कर उनके सरल और साहित्यिक हिन्दी भाषा में स्वरचित उदाहरण प्रस्तुत करने में कवि का विशद् अध्ययन भी दर्शनीय है। ये उदाहरण इस तथ्य को भी प्रमाणित करते हैं कि कविता का छन्द से अभिन्न सम्बन्ध है। भले ही आज छन्द मुक्त कविता का बोलबाला हो परन्तु कविता का नाद-सौन्दर्य उसकी छन्दोबद्धता के माध्यम से ही स्पष्ट होता है। कविता में छन्दों के माध्यम से भावों की अभिव्यक्ति किस प्रकार सम्भव हो सकती है, इस बात को जितेन्द्र कमल आनंद के ये स्वरचित उदाहरण अधिक सार्थक रूप में स्पष्ट करते हैं। उनके उदाहरण में रमणीयता और रस पेशलता तो है ही, सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उनकी इन उक्तियों में काव्यगत शिष्टता और भावगत उद्रेक भी स्वतः ही आ गए हैं।
इन उदाहरणों के द्वारा निर्दिष्ट छन्द का साधारणीकरण होने से कवि के मनोभाव तो स्पष्ट होते ही हैं, साथ ही छन्द का विधान भी अपने काव्यगत अनुशासन में परिलक्षित होता है। काव्य का आस्वादन कला पक्ष और भाव पक्ष–दोनों के निश्चित, निर्दिष्ट और निर्धारित रूप में सामने आने से ही हो सकता है। भावों का आस्वादन तभी आनंद प्रदान कर सकता है जब वह अपने अनुशासित रूप में सामने आए। ‘आनंद छंद माला’ (भाग-1) छन्दों के इसी अनुशासन की सोदाहरण काव्यमय अभिव्यक्ति है जिसमें काव्य के साथ-साथ बौद्धिकता और तार्किकता भी तारतम्यता के साथ दिखाई देती है। छन्द एक सुस्पष्ट व्यवस्था का नाम है जिसे कविवर जितेन्द्र कमल आनंद ने अपनी स्वरचित काव्यपंक्तियों के साथ अपनी वैचारिकता का कलेवर प्रदान किया है और इसे काव्यशास्त्रीय पर्यवेक्षण के मानदण्डों पर भी सुस्थापित कर दिया है।
वर्तमान में ग़ज़ल, शायरी आदि काव्य विधाओं का व्याकरण सिखाने वाली अनेक पुस्तकें उपलब्ध हैं जो कहीं न कहीं अध्यावसायी पाठक को अपेक्षित मार्गदर्शन भी प्रदान करती हैं। परन्तु छन्दशास्त्र को पहले तो बहुत कठिन माना जाता है और उसके बाद इसको सिखाने वाली पुस्तकों की संख्या भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं। यदि उपलब्ध हैं भी तो वे किसी विद्वान व्यक्ति के उपयोग की तो हैं परन्तु छन्दशास्त्र के आरंभिक जिज्ञासु पाठक के लिए ऐसी पुस्तकें न के बराबर ही हैं। इस क्रम में आनंद छन्द माला (भाग-1) पाठकों और जिज्ञासुओं के लिए पूर्णतया उपयोगी कही जा सकती है। भारतीय ज्ञान परम्परा में हमारे साहित्य और संस्कृति में ऐसे अनेक तत्त्व हैं जिन्हें आज भले ही नयी पीढ़ी समय के बदलाव के कारण अपने अधिक उपयोग की न समझती हो, परन्तु उनका महत्त्व आज भी अक्षुण्ण है। जितेन्द्र कमल आनंद छन्दशास्त्र का विपुल ज्ञान अत्यंत सहजता, सरलता, सूक्ष्मता और साहित्यिकता के साथ आने वाली पीढ़ी को विभिन्न माध्यमों से प्रदान कर रहे हैं; उसी क्रम में उनका यह प्रयास भी महनीय और उल्लेखनीय है। इस श्रमसाध्य कार्य के लिए जितेन्द्र कमल आनंद आचार्यकवि के रूप में भी साहित्य जगत् में प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुके हैं। प्रस्तुत पुस्तक साहित्य के पठन-पाठन की परम्परा को आगे बढ़ाने में अपना योगदान प्रदान करेगी, ऐसा पूर्ण विश्वास है।
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