विविध हाइकु – पुष्पा मेहरा – 001 

01-03-2022

विविध हाइकु – पुष्पा मेहरा – 001 

पुष्पा मेहरा (अंक: 200, मार्च प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

1.     
फुनगी काँपी 
रात शीत की पीड़ा 
सह ना सकी। 
2. 
शीत से सधी
धूप की अनबन 
घिरा कोहरा। 
3. 
घना अँधेरा 
शीत के आँसुओं से 
नहाता रहा। 
4. 
लाया है साथ 
काम फिर बहार
सजे हैं द्वार। 
5. 
गुलदाउदी 
अंध कुहासा देख 
खिलखिलाई। 
6. 
गुलदाउदी 
ओस भीगी सूर्य को 
दे रही अर्घ्य। 
7. 
भाता ही नहीं 
हाथ को हाथ अब 
वक़्त का फेर। 
8. 
झरता पाला 
मायूस खड़े खेत 
बेबसी ओढ़े। 
9.
हुई जो रात 
ओढ़ कर कुहासा 
रोए पहाड़। 
10.
मौन दीवारें 
झरता हुआ लोना 
बूढ़ों की व्यथा। 
11.
जग का राजा 
मुँह अँधेरे ही आ 
नभ से झाँका। 
12.
चूम आकाश 
चन्द्रभाल पे राजे 
ध्वज तिरंगा। 
13.
बेटी बचाओ 
मात्र नारों की गूँज 
करते हन्ता। 
14.
हुई जो रात 
ओढ़ कर बादल 
सोए पहाड़। 
15.
धैर्य की राह 
गह गह्वर, गिरि
घुटने टेकें। 
16. 
धुंध लपेटे 
द्वारे आया है नागा 
सर्द सबेरा। 
17.
सुधा घट ले 
आकाश चढ़ा चन्दा 
प्यासा चकोर। 
18. 
रीति अनोखी 
मेघ बहुरूपिया 
सूर्य को ढकें। 
19.
महका प्यार 
हर पल सावन 
मन ने जिया। 
20.
 (प्रेम सिंधारा 
 सूर्य किरणें लाईं
 भोर शर्माई। ) 
21.. 
छू के अधर 
बाँस की पोली बंसी 
सुरों से सजी। 
22.
अधर-धरी 
नन्द लला ने बंसी 
रूठीं राधिका। 
23. 
आम्र मञ्जरी 
घर लाई मालिन 
24.. 
महा बसन्त 
झूमी फूली सरसों 
उड़े तितली। 
25.
कोयल बोली 
बाग़ों संग मन में
मिश्री आ घुली। 
26. 
पुरवा-गोद
झूम रही सरसों 
पियरी ओढ़े। 
27.
छोड़ी ना धुरी 
घूम आई धरती 
दसों दिशाएँ। 
28. 
भागता चाँद 
देख–पीछे बादल 
बच्चे भी दौड़ें। 
29.
भर दी गोद 
सूर्य ने धरती की 
फूलों से भरी। 
30.
रुक ना सका 
पीला पड़ा था पत्ता 
माटी में मिला। 
31.
ऋतु बासन्ती
चाँदनी ओढ़े चाँद 
झील-नहाए। 
32.
ओस नहाई 
पत्थर सी पड़ी 
सूनी सड़क। 

1 टिप्पणियाँ

  • आदरणीय सुमन घई मेरे द्वारा रचे हाइकु को आपने अपनी ई पत्रिका में स्थान दिया इसके लिये मैं आपकी हृदय से आभारी हूँ | पुष्पा मेहरा

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