उनकी अदाएँ उनके मोहल्ले में चलते तो देखते
अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श’22 122 22 222 1222 212
उनकी अदाएँ उनके मोहल्ले में चलते तो देखते
वो भी कभी यूँ मेरे क़स्बे से गुज़रते तो देखते
बस दीद की उनकी ख़ाहिश लेकर भटकता हूँ शहर में
लेकिन कभी तो वह भी राह गली में दिखते तो देखते
केवल बहाना है यह मेरा चाय पीना उस चौक पे
सौदा-सुलफ़ लेने वह भी घर से निकलते तो देखते
हर रोज़ उनको बिन देखे ही लौट आने के बाद मैं
अफ़सोस करता हूँ कि थोड़ा और ठहरते तो देखते
मैं बा-अदब ठहरा था जब गुज़रे थे वो मेरे पास से
ऐ 'अर्श' उस दिन ही गर आँखें चार करते तो देखते
17 टिप्पणियाँ
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Khubsurat Ghazal
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kya baat gajab
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खूबसूरत ग़ज़ल
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ख़ूबसूरत शायरियां जी
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सुन्दरम
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Kya kahne bas waah
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शानदार ग़ज़ल वाह जनाब
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Bahut hi khub ghazal mahoday.. namaskar
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शानदार गजल सर
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कमाल की ग़ज़ल सर
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Touching poetry
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Nice shayari
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umdaa ghazal bhai sahab bahut khub
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Lovely, nice gajal
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कमाल की ग़ज़ल जनाब
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Wonderful..
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वाह वाह बहुत खूब ग़ज़ल कही है आपने वाह
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