शिक्षक को पत्र (संशोधित)
विजय नगरकर(अब्राहम लिंकन से क्षमा माँगकर)
सम्माननीय गुरुजी...
मैं जानता हूँ कि इस दुनिया में सभी भाषाओं का साहित्य अच्छा और सच्चा नहीं हैं। यह बात मेरे बेटे को भी सीखनी होगी। पर मैं चाहता हूँ कि आप उसे यह बताएँ कि हर भाषा के पास भी अच्छा हृदय होता है। हर मोहग्रस्त भाषा के अंदर अच्छा बनने की क्षमता होती है। मैं चाहता हूँ कि आप उसे सिखाएँ कि अपनी मातृभाषा के अंदर एक दोस्त बनने की संभावना भी अधिक होती है। ये बातें सीखने में उसे समय लगेगा, मैं जानता हूँ। पर आप उसे सिखाइए कि अपनी भाषा से कमाया गया एक रुपया, सड़क पर मिलने वाले विदेशी पाँच रुपए के नोट से ज़्यादा क़ीमती होता है।
आप उसे बताइएगा कि दूसरों की भाषा के प्रति जलन की भावना अपने मन में ना लाए। साथ ही यह भी सिखाएँ कि खुलकर हँसते हुए भी अपनी भाषा में शालीनता बरतना कितना ज़रूरी है। मुझे उम्मीद है कि आप उसे बता पाएँगे कि दूसरों की भाषा को धमकाना और डराना कोई अच्छी बात नहीं है। यह काम करने से उसे दूर रहना चाहिए।
आप उसे मातृभाषा की किताबें पढ़ने के लिए तो कहिएगा ही, पर साथ ही उसे आकाश में उड़ते विभिन्न भाषी पक्षियों को सुनने, धूप में हरे-भरे मैदानों में खिले-फूलों पर मँडराती हर भाषाओं की तितलियों को निहारने की याद भी दिलाते रहिएगा। उसे सिखाएँ कि भाषाओं की और शब्दों की तीर्थयात्रा पर चलना कितना पवित्र कार्य है। मैं समझता हूँ कि ये बातें उसके लिए ज़्यादा काम की हैं।
मैं मानता हूँ कि स्कूल के दिनों में ही उसे यह बात भी सीखनी होगी कि विदेशी भाषा की नक़ल करके सफल होने से असफल होना अच्छा है। किसी भाषा की बात पर चाहे दूसरे उसे ग़लत कहें, पर अपनी सच्ची मातृभाषा पर क़ायम रहने का हुनर उसमें होना चाहिए। भाषाओं के प्रति विदेशी दयालु लोगों के साथ नम्रता से पेश आना और अपनी भाषाओं को बुरे कहनेवाले लोगों के साथ सख़्ती से पेश आना चाहिए। दूसरों की अन्य भाषाओं की सारी बातें सुनने के बाद उसमें से काम की चीज़ों का चुनाव उसे इन्हीं दिनों में अपनी भाषा के विकास हेतु सीखना होगा।
उसे समझाएँ कि जंगल के सभी पेड़ों की भूमिगत शाखाएँ हर एक पेड़ से जुड़ी रहती हैं। भाषाओं के बारे में यह भी उदाहरण लागू होता है। बहुभाषिक होने से हम हर संकट, तूफ़ान का सामना कर सकते हैं।
आप उसे बताना मत भूलिएगा कि भाषाओं की उदासी को किस तरह प्रसन्नता में बदला जा सकता है। और उसे यह भी बताइएगा कि जब कभी अपने देश अपने परिवार और अपनी भाषा की याद में रोने का मन करे तो रोने में शर्म बिल्कुल ना करे। मेरा सोचना है कि उसे ख़ुद की मातृभाषा पर विश्वास होना चाहिए और दूसरों पर भी। तभी तो वह एक अच्छा इंसान बन पाएगा।
ये बातें बड़ी हैं और लंबी भी। पर आप इनमें से जितना भी उसे बता पाएँ उतना उसके लिए अच्छा होगा। फिर अभी मेरा बेटा बहुत छोटा है और बहुत प्यारा भी।
आपका
अब्राहम लिंकन