रश्मि विभा त्रिपाठी ‘रिशू’ – 010

15-09-2024

रश्मि विभा त्रिपाठी ‘रिशू’ – 010

रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू' (अंक: 261, सितम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

1.
आए क्या दिन!
सरल रहना ही
अब कठिन!!
2.
आदमी सच्चा!
आज के ज़माने में
खा रहा गच्चा।
3.
इस लोक में
छल ही छल मिला
हमें थोक में!
4.
लोग जो पक्के
अपनी ज़ुबान के
खा रहे धक्के!
5.
क्या ख़ूब खेल?
हम ही पीड़ित हैं
हमीं को जेल!
6.
शराफ़त से
जीने वाले जूझते
क्यूँ आफ़त से?
7.
जो था घनिष्ट
बन गया आज वो
एक अनिष्ट!
8.
कौन हँसाता
रोते हुए को अब?
सिर्फ फँसाता!
9.
नहीं टिकाऊ!
आजकल हो गए
रिश्ते बिकाऊ।
10.
जब भी कहा
किसी से राज़ कोई
कितना सहा!
11.
है आम बात
आज के ज़माने में
विश्वासघात!
12.
छल ही छल!
चकनाचूर हुआ
प्यार का बल।
13.
नया क़ानून!
मँहगा हुआ पानी
सस्ता है ख़ून।
14.
एक पत्थर
था उसके दिल की
जगह पर!
15.
जब चलेंगे
प्यार की राह पर
लोग छलेंगे!
16.
जो था पहले
कहाँ रहा इंसान
दिल दहले!
17.
दुनिया कहे
अच्छी स्त्री उसी को, जो
दबके रहे!
18.
जो दुर्गा, काली!
उसी नारी को आज
मिलती गाली।
19.
रुसवा काँटे!
आदमी ही चुभता
दर्द ही बाँटे।
20.
कब सोचता
कोई किसी के लिए?
सिर्फ़ नोचता!

1 टिप्पणियाँ

  • 15 Sep, 2024 11:26 AM

    बहुत सुंदर हाइकु, हार्दिक शुभकामनाऍं ।

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