रश्मि विभा त्रिपाठी ‘रिशू’ – 009

15-06-2024

रश्मि विभा त्रिपाठी ‘रिशू’ – 009

रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू' (अंक: 255, जून द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)


1.
अहा विज्ञान! 
सभ्यताएँ हो गईं
नेट प्रधान। 
2.
अन्याय पर
होगी न्याय की जय
है जो ईश्वर! 
3.
पिता अंजन
आँखों में आँज लिया
मन रंजन! 
4.
दुख में रोते 
क्यों अकेले वे ही, जो 
रिश्ते सँजोते! 
5.
रिश्ते बेजान
धीरे-धीरे हो गया
घर श्मशान! 
6.
तुम निश्छल! 
तुमको पाना तो है
पुण्यों का फल!! 
7.
कैसा है नर? 
ढूँढ़ता है लाभ ही 
हर पहर! 
8.
रिश्ता बिखरा
प्यार का बाग़ फिर
हुआ न हरा! 
9.
रंक या राजा! 
दुनिया में सबका
बजा है बाजा। 
10.
रात औ दिन 
केवल अन्तर्दाह
टेढ़ा निर्वाह! 
11.
सूखा है पानी
आदमी की आँख का
बची बेमानी! 
12.
माँ का ये प्यार
बच्चों पे कर देती
जान निसार। 
13.
विजेता नारी
देती चुनौतियों को
हार करारी। 
14.
नारी एकाकी
गिद्धों ने राह ताकि
नोंच खाने की! 
15.
उग्र स्वभाव
लील लेता प्यार को
रिश्तों का ताव। 
16.
बड़ा अज़ीम 
वह बूढ़ा हकीम 
गाँव का नीम! 
17.
कान्हा बचाना! 
विधिना का ये खेल
है मनमाना। 
18.
भरें वो पेट
स्वार्थ की रोटी से, क्या
लाग-लपेट। 
19.
आज आदमी
भर रहा है जेबें
प्यार की कमी! 
20.
नर निपुण! 
मानवता का गुण
क्यों न सहेजा? 

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