हर सम्त इन हर एक पल में शामिल है तू
अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श’221 222 12 222 12
हर सम्त इन हर एक पल में शामिल है तू,
हर गीत मेरी हर ग़ज़ल में शामिल है तू।
है ख़ुश-नुमा ये ज़िंदगी मेरी आजकल,
ये है कि मेरे आजकल में शामिल है तू।
मैं बे-अदब था बन गया लेकिन बा-अदब,
जब से मेरे तर्ज़-ए-अमल में शामिल है तू।
तेरी तो ना-मौजूदगी में भी दीद है,
हर वक़्त मेरे नैन-तल में शामिल है तू।
कैसे बयाँ मैं कर सकूँ तेरे हुस्न को,
ये इल्म है हुस्न-ए-अज़ल में शामिल है तू।
4 टिप्पणियाँ
-
बेहतरीन गजल
-
Shandar
-
behtareen ghazal
-
Wah waah
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
- ग़ज़ल
-
- अंततः अब मिलना है उनसे मुझे
- इक लगन तिरे शहर में जाने की लगी हुई थी
- इश्क़ तो इश्क़ है सबको इश्क़ हुआ है
- इश्क़ से गर यूँ डर गए होते
- उनकी अदाएँ उनके मोहल्ले में चलते तो देखते
- गीत-ओ-नज़्में लिख उन्हें याद करते हैं
- गुनाह तो नहीं है मोहब्बत करना
- दिल उनका भी अब इख़्तियार में नहीं है
- मेरा सफ़र भी क्या ये मंज़िल भी क्या तिरे बिन
- रोज़ जोश-ए-जुनूँ आए
- सिर्फ़ ईमान बचा कर मैं चला जाऊँगा
- सुनो तो मुझे भी ज़रा तुम
- हर सम्त इन हर एक पल में शामिल है तू
- विडियो
-
- ऑडियो
-