वह भी किसी की बहिन है

01-06-2019

वह भी किसी की बहिन है

नीरजा द्विवेदी

किशोर साहित्य

 

नितिन ने हाल में लखनऊ विश्वविद्यालय में बी.ए. में प्रवेश लिया है। बदायूँ के दातागंज नामक एक क़स्बे से आकर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की चकाचौंध ने उसे चमत्कृत कर दिया था। विश्वविद्यालय के लम्बे चौड़े परिसर को देखकर तो वह अवाक था। अगण्य छात्र-छात्राओं की आधुनिक वेशभूषा देखकर उसने अपने वस्त्रों पर दृष्टि डाली तो एक बार उसे हीनता का आभास हुआ पर तुरंत ही उसे अपने स्वर्गीय पिताजी के शब्दों का ध्यान आया। एक बार पापा के सहयोगी इंजीनियर के बेटे के जन्मदिन पर अनेकों बहुमूल्य भेंटों को देखकर उसने भी अपना जन्मदिन धूमधाम से मनाने की इच्छा प्रकट की थी तो उन्होंने समझाया था – “बेटा! मैं यदि इस तरह तुम्हारा जन्मदिन मनाऊँ तो मेरी आत्मा मुझे धिक्कारेगी। वास्तव में तुम्हारे बाबा-दादी ने मुझमें ईमानदारी के संस्कार भर दिये हैं। अब मैं चाह कर भी ग़लत काम नहीं कर सकता और अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से रिश्वत नहीं ले सकता। उन्हें मुझसे कम तनख़्वाह मिलती है। यदि अपनी तनख़्वाह से मैं इतनी फिजूलखर्ची नहीं कर सकता तो अपने अधीनस्थ लोगों से कैसे भेंट ले सकता हूँ? यदि मैं उनसे आशा रक्खूँगा तो वे ग़लत काम करेंगे और जब सड़क, पुल आदि बनाने में उपयुक्त सामग्री नहीं लगेगी तो देश का नुक्सान तो होगा ही उसका दुष्परिणाम जनता को भुगतना पड़ेगा। मैं इंजीनियर हूँ पर व्यक्ति चाहे किसी विभाग में हो उसका प्रभाव समस्त देश और समाज पर पड़ता है। तुम्हें एक बात और समझाता हूँ कि कभी अपने वस्त्रों और साधनों की तुलना दूसरों से नहीं करनी चाहिये। तुम धैर्य रक्खो और अपने चरित्र को इतना ऊँचा बना लो कि लोगों का ध्यान तुम्हारे वस्त्रों पर न हो और वे तुम्हें आदर से देखें।" 

इस विचार के आते ही नितिन आत्मविश्वास से परिपूर्ण होकर अपनी कक्षा में पहुँचा। जैसा कि आमतौर पर होता है सामान्य छात्र के रूप में उसकी छवि देखकर किसी ने उसकी ओर मित्रता का हाथ नहीं बढ़ाया, केवल प्रकाश नामक एक युवक ने उसकी ओर देखकर मुस्करा कर अभिवादन किया। नितिन प्रकाश की आत्मीयता और हँसमुख स्वभाव को देखकर बहुत प्रभावित हुआ। दोनों के घर समीप ही थे अतः दोनों में घनिष्ठता हो गई। 

एक दिन प्रकाश नितिन से बोला, “चलो यार कुछ मस्ती करते हैं।"

नितिन को साथ लेकर वह लड़कियों के विद्यालय के सामने खड़ा हो गया। जो लड़की निकलती उसे देखकर वह सीटी मारता या फ़िल्मी गाना गाने लगता। नितिन को यह अच्छा न लगा। उसकी मम्मी ने उसे सिखाया था कि 'कभी किसी लड़की के प्रति दुर्व्यवहार न करना। यदि तुम्हें कोई लड़की अच्छी लगती है तो उसकी ओर शालीनता से मित्रता का हाथ फैलाओ। सोचो यदि कोई लड़का तुम्हारी बहिन या भाभी के साथ ऐसा व्यवहार करे तो तुम्हें कैसा लगेगा?' 

नितिन ने प्रकाश को समझाया पर उसके कान पर जूँ नहीं रेंगी। नितिन को प्रकाश बहुत अच्छा लगता था पर उसकी एक यही आदत उसे पसंद न थी। उसने प्रकाश को सुधारने के लिये एक उपाय सोचा। प्रकाश की बड़ी बहिन दामिनी डिग्री कालेज में पढ़ती थी। उसने दामिनी से कहा, “दीदी! प्रकाश मेरा घनिष्ठ मित्र है। मैं देखता हूँ कि वह बहुत अच्छा युवक है पर उसकी एक आदत मुझे अच्छी नहीं लगती - वह लड़कियों को छेड़ता है।"

“मैं पापा से शिकायत करूँगी वह भैया की मार-मार कर अकल ठिकाने लगा देंगे,” दामिनी ग़ुस्से में बोली।

“नहीं दीदी! इससे कुछ नहीं होगा। यदि आप साथ दें तो कुछ असर अवश्य होगा," नितिन ने कहा

दामिनी उत्सुकता से उसकी ओर देखने लगी। नितिन बोला, “मैंने देखा है कि प्रकाश आपको बहुत प्यार करता है। यदि कोई उसके सामने आपका नाम भी लेता है तो उसे अच्छा नहीं लगता है। आप जब कालेज से लौटती हैं तो मैं और राघव ऐसे व्यवहार करेंगे जैसे हमने आपको छेड़ा हो। आपको तो मालूम है कि राघव कितना अच्छा पढ़ाकू छात्र है। बस घर आकर आप प्रकाश के सामने ऐसे व्यवहार करियेगा जैसे हमने आपको छेड़ा हो।"

“ठीक है पर यह ध्यान रखना कि पापा घर पर न हों नहीं तो तुम दोनों की ख़ैर नहीं होगी," दामिनी हँसकर बोली।

 नितिन भी हँसने लगा और बोला, “अंकल जी जब दौरे पर हों तो मुझे मिसकाल कर दीजियेगा। हाँ आंटी जी को भी इस बारे में पहले से बता दीजियेगा नहीं तो हम जेल पहुँच जायेंगे।"

एक दिन प्रकाश के पापा काम से दिल्ली गये थे तब दामिनी ने उसे फोन पर सूचना दे दी। राघव दामिनी का सहपाठी था और नितिन का ममेरा भाई था। दोनों ने योजना बना ली और जब दामिनी घर लौट रही थी तो नितिन और राघव ने उसके लिये फ़िल्मी गाने गाये, साथ ही बदत्तमीज़ी से उसका दुपट्टा फाड़ दिया। प्रकाश घर आया तो दीदी की हालत देखकर आपे से बाहर हो गया। जब उसे ज्ञात हुआ कि दीदी को छेड़ने वाले नितिन और पड़ोस के राघव हैं तब तो उसका क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया। वह उन्हें मारने पहुँच गया। इस पर राघव बोला, "तुम्हारी बहिन के साथ जब यह सब हुआ तो यह अपराध है। तुम रोज़ किसी न किसी को छेड़ते हो तो वह ठीक है? वह लड़की भी तो किसी न किसी की बहिन होती है। तुम उनका अपमान करते हो सोचो उन्हें कैसा लगता होगा?"

नितिन बोला, “तुम्हें सबक़ सिखाने के लिये मैंने और राघव ने तुम्हारी दीदी के साथ मिलकर यह नाटक किया था। दीदी! आप हम दोनों को क्षमा कर दें। हम तो स्वप्न में भी किसी लड़की के साथ दुर्व्यवहार करने का सोच नहीं सकते फिर आप तो हमारी बहिन हैं।"

दामिनी की मम्मी भी वहाँ आ गईं और हँसकर बोलीं, "बेटा! तुम्हें कोई लड़की पसंद है तो मुझे बता दो, तुम्हारी शादी की बात करूँ।"

प्रकाश को सीख मिल गई। कान पकड़कर बोला, “मम्मी! मुझे क्षमा कर दीजिये। ऐसी कोई बात नहीं है। फ़िल्में देखकर मैं भटक गया था। दीदी मुझे माफ़ कर दो। नितिन, राघव मैं बहुत शर्मिंदा हूँ कि मैंने तुम पर हाथ उठाया। अब मैं कभी ऐसी हरकत नहीं करूँगा।"

दामिनी बोली, “भैया! तुम किसी लड़की से बात करना चाहते हो तो शालीनता से उसके सामने मित्रता का हाथ फैलाओ। अब पहले का ज़माना नहीं है कि जब लड़के-लड़कियों को परस्पर मिलने-जुलने या बात करने की मनाही थी। मुझे छेड़ने की बात से तुम्हारा खून खौलने लगा। सोचो जिस लड़की को तुम छेड़ते हो उसे सार्वजनिक रूप से किस मानसिक पीड़ा और अपमान से गुज़रना पड़ता है। जैसे मैं तुम्हारी बहिन हूँ ऐसे ही हर लड़की किसी न किसी की बहिन है।"

प्रकाश ने सबसे क्षमा माँगी और वचन दिया कि अब कभी किसी को नहीं छेड़ूँगा।

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