शुक्रिया

15-02-2021

शुक्रिया

आशीष तिवारी निर्मल (अंक: 175, फरवरी द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

बीच राह में छोड़कर जाने के लिए शुक्रिया
दर्द दे दे के मुझको रुलाने के लिए शुक्रिया।
 
मंज़िल मुझे मिल ही गई जैसे-तैसे ही सही
मेरी राह में काँटे बिछाने के लिए शुक्रिया।
 
समय से सीख रखी थी तैराकी मैंने कभी
साज़िशन मेरी नाव डुबाने के लिए शुक्रिया।
 
मेरा सब कुछ लुटा हुआ है पहले से ही यहाँ
मेरे घरौंदे में आग लगाने के लिए शुक्रिया।
 
दुख दर्द तुम न देते तो क़लम चलती नहीं
ग़म-ए-घूँट मुझको पिलाने के लिए शुक्रिया।

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