हे सखे

अनीता श्रीवास्तव (अंक: 178, अप्रैल प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

जब छूट चुके हों साथ सभी,
जब रूठ चुके हों ख़ास सभी।
जब दरक रहा हो आत्म बल,
जब रिश्ते हो जाएँ दुर्बल।
तब तुम्हीं मेरे सच्चे साथी,
मैं मौन लिखूँ तुमको पाती।
सारे अनुपम उद्दाम भाव,
दे कर हर लो मेरे अभाव।
तुम मेरा संभाव्य काव्य,
फिर क्यों हो गए हो दुसाध्य।
मेरे शोणित में घुल जाए,
अंतस उजला हो धुल जाए।
 तुम गहन रुदन की सिसकी हो,
तुम अंत समय की हिचकी हो।
क्या पता कहाँ तक चल पाऊँ,
मैं बीच दिवस ना ढल जाऊँ।
पग नूपुर की रुनझुन दे दो,
अपनी मुरली की धुन दे दो।
हो जाय सुवासित ये जीवन,
मिट जाय मलिन मन की तड़पन।

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