विशेषांक: फीजी का हिन्दी साहित्य

20 Dec, 2020

दुलहन सी सजी-धजी 
अप्सरा सी मनमोहक 
प्रकृति में सिमटी हुई 
पग पग घाटी के आँचल    
         में हरियाली            
                     फैलाती 
ओस की बूँद पर जैसे 
सूरज का पहला 
           किरण का 
            लालिमा का         
               झलझलाहट 
इतना सुन्दर देश है 
                    हमारा॥
 
झूम-झूम कर 
           नाचती गाती 
नज़र को अपनी तरफ 
आकर्षित करती
मंद-मंद हवा के संग,          
देश मेरा नीला नमकीन 
    पानी से घिरा 
लहरों से लहर मिल
तटों से टकराती 
कोसों मील तक 
सफेद रेत बिछाती 
नारियल के लम्बे-लम्बे 
           पत्ते 
हवाओं में शोर मचाते,
पहाड़ों से झरने 
तरंग मिलाते नदियों में 
                मिलते 
शबनमी -बहावों में बहते, 
सागर में जा मिलते, 
रंग-बिरंगे बोगनबेलिया 
फ्रेंजीपानी हाइबिसकस 
खिलते, झड़ते 
देश के सुन्दरता में 
        चार चाँद लगा देते 
 
खेतों में गन्ना धान यंगोना
                लहलहाते,
हर कोई दिलोजान  से 
करता मेहनत 
अफ़सर, मज़दूर, किसान, 
बच्चे-बूढ़े, नवजवान,
सुबह- सुबह मंदिर 
          गिरजा में गूँजता
घंटी का झनकार,
मस्जिद में अजान,            
दिन गुजरता 
बूला नमस्ते सलाम 
चेहरे पर मुस्कान,
साँझ की बेला का होता 
        इन्तज़ार, 
दिन भर का थका सूरज
 आहिस्ते-आहिस्ते 
             ढलता, 
प्रशान्त की लहरों मे 
अपने हज़ारों-हज़ार रंग। 
          बिखेरता 
मनमोहित अनुपम
  रोचक-रोमानी नज़ारा,
            पेश करता
दिन भर की थकावट 
              तनाव को 
अपने में समेटता,
रात कम नहीं 
तारों का झिलमिलाना, 
चान्दनी रात या अमावस 
होता ताकी ताकी 
रग्बी मैच,कहानियाँ
कुछ पूर्वजों का,
कुछ आज का
कुछ आने वाला कल का 
होता मज़ाक, दिल्लगी 
संस्कृति-संस्कार का 
आदान- प्रदान,
हँसते- मुस्कुराते
दम्पति, बूढ़े, दादा, चाची
 
सुन्दर निराले 
   युवक, युवती
 चलते-फिरते
सारी सूलू फ्रेंजीपानी 
हमारी खुशियों की 
           खुशबू में, 
हमारा वतन फीजी 
  लगता है 
सावन, रमजाने मुबारक 
 ईस्टर का मौसम हर दिन 
यही है वतन मेरा 
सारे जहाँ में सबसे 
      अनोखा॥

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

इस विशेषांक में
बात-चीत
साहित्यिक आलेख
कविता
शोध निबन्ध
पुस्तक चर्चा
पुस्तक समीक्षा
स्मृति लेख
ऐतिहासिक
कहानी
लघुकथा
ऑडिओ
विडिओ