ऊँचे पहाड़

01-05-2024

ऊँचे पहाड़

डॉ. नीरू भट्ट (अंक: 252, मई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

ऊँचे ऊँचे पहाड़ों को देखकर अक्सर सोचती हूँ
 
सदियों से जड़वत, 
सामंजस्य बनाये एक इंच भी ना हिले
दृढ़ता, ठहराव और निश्चलता 
जो इनमें है, मुझमें क्यूँ नहीं। 
 
दूर दूर तक सफ़ेद बर्फ़ की 
मख़मली चादर में लिपटे
कहीं चीड़, चिनार और 
देवदार की हरी चुनरी ओढ़े
विविधता, सादगी और सुंदरता 
जो इनमें है, मुझमें क्यूँ नहीं। 
 
सदा ऊपर बस ऊपर उठने का संदेश देते 
कभी हवा कभी पानी बनकर 
और कभी ढाल बनकर
सेवा करने की चाह, भाव और समर्पण 
जो इनमें है, मुझमें क्यूँ नहीं। 
 
मानवीय कृत्यों को 
उन्हीं के अंदाज़ में बदला लेने
बड़े बड़े पत्थरों को लुढ़का कर 
अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की
उदण्डता, आक्रोश और प्रतिशोध 
जो इनमें है, मुझमें क्यूँ नहीं॥

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