बरसात का दिन
डॉ. नीरू भट्ट
बरसात का दिन
आकाश मेंं बादलों की आवाजाही
स्कूल की कक्षा की याद दिलाती।
एक एक कर आते बादलों के झुंड
एक अलग पटकथा सुना जाते हैं
वैसे तो आजकल सूरज दादा को आराम है
फिर भी स्कूल की घंटी की तरह
यदा-कदा अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं।
पहले आते छोटे-छोटे सफ़ेद, नीले, लाल, पीले बादल
कभी धीरे कभी मध्यम ध्वनि से गरजते
स्कूल की बैंड टीम की तरह!
सबसे आगे चल रहे सफ़ेद बादल को देख लगता
मानो श्वेत साड़ी मेंं लिपटी
संगीत अध्यापिका टीम का नेतृत्व कर रही हैं।
ये रंग जमाते, नाचते गाते, उत्साह बढ़ाते
तस्वीरें खींचते और विदा लेते।
फिर वो भीमकाय काले बादल
भीषण गर्जना करते हुए आते
बिल्कुल गणित के अध्यापक की तरह।
सिखाते कम डराते ज़्यादा!
चिल्ला चिल्ली के बाद पल भर साँस लेते
जाते-जाते फिर ज़ोर से गरजते
मानो चेतावनी दे रहे हों
गणित है, अभ्यास से होगा।
कक्षा में सीखना है तो सीखो,
वरना ट्यूशन टीचर से पढ़ो।
उनकी घुड़की से सूरज दादा भी डर कर कहीं छुप जाते
लेकिन उनके जाते ही
थोड़ा झाँकने की औपचरिकता पूरी कर ही लेते
आख़िर ड्यूटी है, निभानी तो पड़ेगी।
इसी बीच झूमते हुए आते भूरे बादल
लगता मानो आ रही हों
भूरी साड़ी पहनी विज्ञान की अध्यापिका।
ऊँची एड़ी की सैन्डल से टक टक करती
मोतियों से भरे बड़े भूरे डिज़ाइनर थैले को खीचती
हल्की गर्जना से हाँफती, बुदबुदाती
फिर थैले का मुँह खोलती
और रिमझिम रिमझिम बरसात करती॥