स्पर्श (डॉ. कविता भट्ट)
डॉ. कविता भट्टविरहन के विरह-सा
दूषित-व्यथित पर्यावरण
चाहता है स्पर्श-
प्रेमी के समान
प्रेम में शर्त नहीं होती
यह तो देता है- जीवन
जैसे वृक्ष देते छाँव-हवा
नदी गाती है प्रवाह के सुर में
प्यास बुझाने वाले गीत
बिन किसी अनुबंध ही।
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