कविता भट्ट - 1
डॉ. कविता भट्टदोहे
1.
कोई भी अपना नहीं, ना ही जाने पीर।
ओ मन अब तू बावरे,काहे धरे न धीर।।
2.
ऐसे तुम रूठे पिया, ज्यों मावस में चाँद
आ जाओ इक बार तो, घोर रात को फाँद।
3.
कंटक-पथ पर चल रही, तेरी यादें साथ।
कुछ भी जग कहता रहे, तू न छोड़ना हाथ।
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