लेखकों के लिए
पूर्व समीक्षित
अन्तरजाल पर साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली
ISSN 2292-9754
वर्ष: 21, अंक 277, मई द्वितीय अंक, 2025
साहित्य कुञ्ज के बारे में
समाचार
संपर्क करें
काव्य साहित्य
+
कविता
गीत-नवगीत
गीतिका
दोहे
कविता - मुक्तक
कविता - क्षणिका
कवित-माहिया
लोक गीत
कविता - हाइकु
कविता-तांका
कविता-चोका
कविता-सेदोका
महाकाव्य
चम्पू-काव्य
खण्डकाव्य
शायरी
+
ग़ज़ल
नज़्म
रुबाई
क़ता
सजल
कथा-साहित्य
+
कहानी
लघुकथा
सांस्कृतिक कथा
लोक कथा
उपन्यास
हास्य/व्यंग्य
+
हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी
हास्य व्यंग्य कविता
अनूदित साहित्य
+
अनूदित कविता
अनूदित कहानी
अनूदित लघुकथा
अनूदित लोक कथा
अनूदित आलेख
आलेख
+
साहित्यिक
सांस्कृतिक आलेख
सामाजिक
चिन्तन
शोध निबन्ध
ललित निबन्ध
हाइबुन
काम की बात
ऐतिहासिक
सिनेमा और साहित्य
सिनेमा चर्चा
ललित कला
स्वास्थ्य
सम्पादकीय
+
सम्पादकीय सूची
संस्मरण
+
आप-बीती
स्मृति लेख
व्यक्ति चित्र
आत्मकथा
यात्रा वृत्तांत
डायरी
रेखाचित्र
बच्चों के मुख से
बड़ों के मुख से
यात्रा संस्मरण
रिपोर्ताज
बाल साहित्य
+
बाल साहित्य कविता
बाल साहित्य कहानी
बाल साहित्य लघुकथा
बाल साहित्य नाटक
बाल साहित्य आलेख
किशोर साहित्य कविता
किशोर साहित्य कहानी
किशोर साहित्य लघुकथा
किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी
किशोर हास्य व्यंग्य कविता
किशोर साहित्य नाटक
किशोर साहित्य आलेख
नाट्य-साहित्य
+
नाटक
एकांकी
काव्य नाटक
प्रहसन
अन्य
+
पत्र
कार्यक्रम रिपोर्ट
सम्पादकीय प्रतिक्रिया
पर्यटन
साक्षात्कार
+
बात-चीत
समीक्षा
+
पुस्तक समीक्षा
पुस्तक चर्चा
रचना समीक्षा
लेखक
खोजें
+
रचनाएँ
लेखक
किसी दिन तो
01-12-2019
मुख्यपृष्ठ
काव्य साहित्य
कविता
किसी दिन तो
किसी दिन तो
डॉ. कविता भट्ट
(अंक: 145, दिसंबर प्रथम, 2019 में प्रकाशित)
किसी दिन तो
फूटता तुम्हारा प्रेम
पहाड़ से छल-छल
बहते झरने-सा
अभिसिंचित होता तन-मन
अतृप्त धरा-सा।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
टिप्पणी भेजें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
अथाह प्रेम
आँखें
आँसू पीना ही पड़ता है
आख़िरी बुज़ुर्ग
उगने की प्रतीक्षा
उन पाप के नोटों का क्या होगा?
कामनाएँ
किसी दिन तो
जीवन (डॉ. कविता भट्ट)
तुम आए
तुम क्या जानो?
तुम्हारा स्पर्श
तू शंकर मेरा
दीपक है मेरा प्यार
पत्थर होती अहल्या
पीड़ा (डॉ. कविता भट्ट)
प्रणय-निवेदन
फैलाओ अपनी बाँहें
बूढ़ा पहाड़ी घर
मन्दिर के दिये -सा
माँ
मिलन में भी
मृगतृष्णा
यदि तुम रहो प्रिय! साथ में
वह अब भी ढो रही है
वो धोती–पगड़ी वाला
स्पर्श (डॉ. कविता भट्ट)
हे प्रिय!
हे प्रिय!
ज़िंदगी
दोहे
कविता भट्ट - 1
विडियो
ऑडियो
विशेषांक में