रोशनी लाती है दीवाली
अभिषेक श्रीवास्तव ‘शिवा’१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
सजल | विधाता छंद
पुरातन धर्म का भी मर्म बतलाती है दीवाली
हमें है प्रेम से रहना ये सिखलाती है दीवाली
कहीं हमने ग़रीबों को यहाँ बाँटा कभी जो प्रेम
यहाँ फिर तब ग़रीबी में भी मुस्काती है दीवाली
दिया जब प्रेम का हम भी जलाते हैं यहाँ घर में
ज़माने के ॲंधेरे को यूँ बिसराती है दीवाली
हमें मिलजुल के यह ख़ुशियाँ मनाना भी सिखाती है
अमावस भी घरों में रोशनी लाती है दिवाली
रहें हम स्वस्थ तन मन से, ‘शिवा’ अब इस ज़माने में
ख़ुशी सबके घरों तक ख़ूब पहुँचाती है दीवाली