कभी तो रात की तन्हाइयाँ आवाज़ देती हैं
अभिषेक श्रीवास्तव ‘शिवा’1222 1222 1222 1222
कभी तो रात की तन्हाइयाँ आवाज़ देती हैं
कभी ये घर की ज़िम्मेदारियाँ आवाज़ देती हैं
नहीं रहती उड़ानों की यहाँ सीमा हमारी तब
हमें दुनिया की ये पाबंदियाँ आवाज़ देती हैं
हमारी बात ना होती कभी घर में किसी दिन तो
हमें माँ बाप की वो हिचकियाँआवाज़ देती हैं
करें जब हम सही तो वो किसी को ना पता चलता
करें जब हम ग़लत बदनामियाँ आवाज़ देती हैं
परेशानी में है कोई किसी को फ़र्क़ ना पड़ता
सभी दुख मिटते रिश्तेदारियाँ आवाज़ देती हैं
नहीं रह पा रहा हूँ मैं अकेले इस शहर में अब
मुझे बच्चों की वो किलकारियाँ आवाज़ देती हैं
कभी जाता हूँ जब भी मैं शहर को छोड़ अपने घर
मुझे फिर इस शहर की बस्तियाँ आवाज़ देती हैं
भरी आँखों से लिखता जब जवानी की कहानी मैं
मुझे बचपन की वो बदमाशियाँ आवाज़ देती हैं
बड़ा तो हो गया है उम्र से अब ये ‘शिवा’ फिर भी
अभी दिल की इसे नादानियाँ आवाज़ देती हैं