बड़े कितने भी हो जाएँ पिता का डर नहीं जाता
अभिषेक श्रीवास्तव ‘शिवा’१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
बड़े कितने भी हो जाएँ पिता का डर नहीं जाता
पिता कर दें मना बेटा कभी लड़कर नहीं जाता
यक़ीं रखते हैं बच्चों पर कभी वह डाँट भी देते
रहें नाराज़ कितने भी, रहा पल-भर नहीं जाता
जहाँ सब लोग मिलकर बैठते थे साथ में हरदम
वहाँ अब एक पंछी भी कभी उड़कर नहीं जाता
जुटाने धन यहाँ सब लोग जीवन भर लगे रहते
है रहता सब यहीं, इंसान कुछ लेकर नहीं जाता
यहीं सब भूल कर रंजिश, मिटा दें बैर अपनों से
‘शिवा‘ मानो कभी यूँ साथ, में रहबर नहीं जाता।