क़ैद हैं . . .

15-06-2023

क़ैद हैं . . .

अभिषेक श्रीवास्तव ‘शिवा’ (अंक: 231, जून द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

2122     2122     2122     212
 
क्यूँ यहाँ सब लोग अब यूँ मुश्किलों में क़ैद हैं 
ज़िन्दगी के मोड़ सब क्यों नफ़रतों में क़ैद हैं 
 
आजकल अख़बार की सब सुर्ख़ियों में क़ैद हैं
और बाक़ी लोग ज़र की तख़्तियों में क़ैद हैं 
 
अब सलीक़ा भूलकर यूँ सादगी की रात-दिन 
आज हर कोई यहाँ तो महफ़िलों में क़ैद हैं 
 
महफ़िलों की शौक़ में घर का पता भूले ‘शिवा’
पूछना है दूर हैं या फ़ासलों में क़ैद हैं 
 
कल दिलों में राज करते मौज से थे जो 'शिवा'
टूटकर जाने कहाँ अब गर्दिशों में क़ैद हैं।

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