क़ाफ़िया-ओं का स्वर रदीफ़-में क़ैद हैं
अभिषेक श्रीवास्तव ‘शिवा’
2122 2122 2122 212
आजकल सब लोग कैसी मुश्किलों में क़ैद हैं
ज़िन्दगी के मोड़ उनकी नफ़रतों में क़ैद हैं
काम बिन अख़बार की सब सुर्ख़ियों में क़ैद हैं
और बाक़ी लोग ज़र की तख़्तियों में क़ैद हैं
सब सलीक़ा भूलकर अब सादगी के रात-दिन
रोज़ लुटती ज़िन्दगी के महफ़िलों में क़ैद हैं
मंज़िलों की चाह में घर का पता भूले सभी
पूछता हूँ दूर हैं या फ़ासलों में क़ैद हैं
कल दिलों में राज करते मौज से थे जो 'शिवा'
टूटकर जानें कहाँ अब गर्दिशों में क़ैद हैं