रिस रहा साँसों का घट

01-05-2023

रिस रहा साँसों का घट

सविता अग्रवाल ‘सवि’ (अंक: 228, मई प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

रिस रहा है साँसों का घट
मैं प्रतिदिन पी रही हूँ
काम बाक़ी हैं बहुत पर
तन ये थकने सा लगा है
साँसों से पन्ने मैं हूँ लिखती
पढ़-पढ़ उन्हें मैं जी रही हूँ
जीवन की कविता है अधूरी
पूर्ण होगी या नहीं भी
दे रहा दस्तक अन्धेरा
खिड़कियों और दर पे मेरे
नयनों ने ओढ़ी सुरमई चादर
किरणों में दिखता है अन्धेरा
दर्द सीने में लिए हूँ
साथ लेकर जी ना पाऊँ
खोल दूँ सब परतें मन की
जो दबी, सबको बताऊँ
शूल जो कुछ चुभ गए हैं
पथ चली जब पाँव मेरे
चाहूँ उनको बैठ करके
शान्ति से मैं निकालूँ
घोट कर पी जाऊँ सारी बातें
प्रियजन संग बीती मुलाक़ातें
ले चलूँ संग बाँध पल्लू के किनारे
उड़ती फिरूँ फिर मैं कहीं भी
 नभ कभी, समुन्दर के पारे
आज क्यूँ लिखने को सब कुछ
क़लम मेरी हुई आकुल
कह ना पाई जग से कभी मैं
कहने को मन बड़ा है व्याकुल
ख़ाली होगा साँस का घट
कब, कहाँ, किसको पता है? 
अंत होगा साँसों का कब
ये तो बस रब को पता है
ये तो बस रब को पता है। 

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