अमिट यादें
सविता अग्रवाल ‘सवि’
याद है मुझे आज भी
तुम्हारे साथ कुछ क़दम चलना
पथ में चंचल हवाओं का मचलना
उड़ती लटों को बार बार सँवारना
मुस्कुरा कर एक दूजे को देखना
पलकों को शरमा कर झुकाना
पैरों में ढीली सी चप्पल संग चलना
थक कर किसी पत्थर पर ठहरना
होंठ बंद होने पर भी
मन की भाषा को पढ़ना
दुपट्टे को बार बार सँभालना
मंद बहती बयार संग
कुछ क़दम चलना
याद है मुझे आज भी
साथ होने के अहसास को
दिल में उठती प्यार की
तरंगों संग जीना
अचानक ठोकर खाना
तुम्हारा सहारा पाकर
तन में सिहरन का दौड़ना
याद है मुझे आज भी
बस यूँ ही कुछ क़दम
चलते जाना
तुम्हारे होंठों में दबी
कुछ कहने की
बेचैनी को समझना
सफ़र की दूरी को नापना
और साथ होने पर भी
एक दूजे से कुछ न कहना
कुछ भी न कहना
याद है मुझे आज भी।